हिस्सा-47
*सूरए बक़रह, पारह 01*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
*आयत ④⑤_तर्जुमह*
और मदद मांगो सब्र से और नमाज़ से। और बेशक वो ज़रूर बोज़ है, एमजीआर खुशुअवालो पर।
*तफ़सीर*
और याद रख्खो के तुमको हर हाल में मददगार की ज़रूरत है। तुम को हुक्म दिया जाता है के हर हाल में मदद मांगो...
ख्वाहिश को दबा कर,
पाबन्दी ए शरीअत को बर्दास्त कर के,
गुनाहो से बचने की तक़लीफ़ क़ुबूल कर के,
रोज़ा रख कर, और
हर किस्म के सब्र से और नमाज़ की पाबंदी से।
ख्वाह कितना ही गिरा गुज़रे, अगर सब्र व नमाज़ को अपनाडगर बना लिया और ऐसे साबिर और नमाज़ी हो गये के तुम सब्र व नमाज़ के पैकर बन गये, तो अब तुमको मददगार की तलाश न होगी। बल्कि मदद चाहने वाले तुमको तलाश करेंगे।
और नमाज़ में तकलीफ कौनसी है ? हा ! बेशक वो ज़रूर भारी गुज़रती है और बोज़ है सुस्त लोगो और बे-खौफो के हक़ में। मगर खुशूअ (एकाग्रता) वालो पर बिलकुल आसान और फुल की तरह है। उनकी बंदगी आजिज़ी व जिज्ज़ पसंदी को भली लगती है।
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*DEEN-E-NABI ﷺ*
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