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Thursday 21 July 2016

फुतूह अल ग़ैब

*एअतेराफे तकसीर और इस्तिगफार*
हिस्सा-2
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

       हंमेशा एहकामे इलाहीकी पाबन्दी करो और जिन बातोंसे मना किया गया है, उनसे इजतेनाब (बचों) करो। मकदराते खुदावन्दी को इसीके इख्तियार व रज़ा पर रेहने दो और मख्लूकात में से किसीको इसका शरीक न बनाओ।
     याद रख्खो के तुम्हारे इरादे और आरज़ूअए खुदा तआला के पैदा करदा हैं। इसलिये अपना इरादा और अपनी ख्वाहिशें खालिक के साथ शिर्क करना हैं और ऐसा करने पर तुम मुशरेकीनमें से हो जाओगे। चुनान्चे खुदा तआला फरमाता है:
*अगर अल्लाह के दिदारकी तमन्ना हो तो नेक काम करने चाहीयें और ज़ुरूरी है के उसकी इबादत में किसीको शरीक ना करे*।
   शिर्क सिर्फ बुतपरस्ती ही नहीं है, ख्वाहिशाते नफ्सकी पैरवी और दुनियाकी किसी भी चीज़ के साथ इश्क की कैफियत से मुन्सलिक हो जाना सरहन शिर्क है। खुदा के सिवा हर शय गैर खुदा है और हर गैर खुदा की ख्वाहिश शिर्क कहेलाएगी। लेहाज़ा इससे परहेज़ करो। अपने नफ्सकी बुराइयोंसे डरते रहो, तलाशे हक़में साइ (कोशिश करनेवाला) रहो।
   गफलत को शआर (तरीका) न करो। जो हाल व मुकाम तुम्हें मिलें उन्हें अपने नफस से मन्सूब न करो। इसलिये के तगीरे हाल (हालत बदलने)के लिये हर रोज़ खुदा तआलाकी नइ शान है।

बाक़ी कल की पोस्ट में... इंसा अल्लाह
*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज 13,14
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