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Wednesday 20 July 2016

अब्लाक़ घोडा

*अब्लक़ घोड़े सुवार*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     हज़रते अहमद बीन इस्हाक़ अलैरहमा फरमाते है : मेरा भाई बा वुजुदे गुरबत रिज़ाए इलाही की निय्यत से हर साल बकरह इद में क़ुरबानी किया करता था। उस के इंतिक़ाल के बाद में ने एक ख्वाब देखा कि क़यामत बरपा हो गई है और लोग अपनी अपनी क़ब्रो से निकल आए है, यकायक मेरा मर्हुम भाई एक अब्लक़ (यानी दो रंगे चितकुब्रे) घोड़े पर सुवार नज़र आया, उसके साथ और भी बहुत सारे घोड़े थे।
     मेने पूछा : ऐ मेरे भाई ! अल्लाह ने आल के साथ क्या मुआमला फ़रमाया ? कहने लगा : अल्लाह ने मुझे बख्श दिया। पूछा : किस अमल के सबब ? कहा : एक दिन किसी गरीब बुढ़िया को ब निय्यते षवाब में ने एक दिरहम दिया था वही काम आ गया। पूछा : ये घोड़े कैसे है ? बोला : ये सब मेरी *बक़रह ईद की कुर्बानिया है* और जिस पर में सुवार हु ये मेरी सबसे पहली क़ुरबानी है। मेने पूछा : अब कहा का अज़्म है ? कहा : जन्नत का।
     ये कह कर मेरी नज़र से ओझल हो गया। अल्लाह की उन पर रहमत हो ओर उनके सदके हमरी बे हिसाब मगफिरत हो।
*✍🏽अब्लक़ घोडा 1*
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