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Friday 22 July 2016

फुतूह अल ग़ैब

*एअतेराफे तकसीर और इस्तिगफार*
(हिस्सा-3)

*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

      अल्लाह की ज़ात बन्दे और इसके कल्बके माबीन (दरमियान- बीच) है। इसलिये ये करीने क्यास है के अपने जिस हालकी तुम दुसरों को खबर दो वो तुम से सलब (छीन) कर लिया जाए और तुम जिसे  पाएदार और बाकी समज़ते हो उसे खत्म कर दिया जाए और तुम्हे उस आदमीसे नादिम होना पडे जिससे तुमने बातकी थी। इस लिये ज़ुरूरी है के अपने मकाम को अपने दिलहीमें रख्खो। किसी दूसरे को न बताओ और अगर खुदा तुम्हें तुम्हारे हाल व मकाम पर कायम रख्खे तो उसे खुदा का इनाम समज़कर उसका शुक्र अदा करो और उसमें इज़ाफे की दरखास्त करो और मौजूदा हालके बजाए ऐसा हाल नसीब हो जिसमें इल्म व मआरिफत और नूर व अदब ज़यादा हो, तो तुम्हारे लिये तरक्की का बाइस है।
      खुदावन्द तआला इर्शाद फरमाते है के, *जब हम किसी आयत को मन्सूख (रद्) करते है, उस जैसी या उससे बेहतर आयात लाते है।*

बाक़ी कल की पोस्ट में... इंसा अल्लाह

*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज 14,15
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