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Thursday 14 July 2016

सिरते मुस्तफाﷺ


*जंगे उहुद*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*हज़रते उम्मे अम्मारा की जां निषारि*
हिस्सा-02
     हज़रते बीबी उम्मे अम्माराرضي الله تعالي عنها के फ़रज़न्द हज़रते अब्दुल्लाहرضي الله تعالي عنه कहते है कि मुझे एक काफिरने ज़ख़्मी कर दिया और मेरे ज़ख्म से खून बन्द नही होता था। मेरी वालिदा ने फौरन अपना कपड़ा फाड़ कर ज़ख्म को बांध दिया और कहा की बेटा उठो, खड़े हो जाओ फिर जिहाद में मशगूल हो जाओ।
     इत्तिफ़ाक़ से वही काफ़िर हुज़ुरﷺ के सामने आ गया तो आपﷺ ने फ़रमाया कि ऐ उम्मे अम्मारा ! देख तेरे बेटे को ज़ख़्मी करनेवाला यही है। ये सुनते ही मेरी माँ ने झपट कर उस काफिर की टांग पर तलवार का ऐसा भरपूर हाथ मारा कि वो काफ़िर गिर पड़ा और फिर चल न सका बल्कि सुरीन के बल घिसटता हुवा भगा।
     ये मंज़र देख कर हुज़ूरﷺ हस पड़े और फ़रमाया कि ऐ उम्मे अम्मारा ! तू खुदा का शुक्र अदा कर कि उसने तुझ को इतनी ताक़त और हिम्मत आता फ़रमाई की तूने खुदा की राह में जिहाद किया, हज़रते उम्मे अम्मारा ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाहﷺ ! दुआ फरमाइये की हम लोगो को जन्नत में आपकी खिदमत गुज़ारी का शरफ हासिल हो जाए। उस वक़्त आप ने उनके लिये और उनके शोहर और उनके बेटो के लिये इस तरह दुआ फ़रमाई कि "या अल्लाह इन सब को जन्नत में मेरा रफ़ीक़ बना दे"
     हज़रते उम्मे अम्मारा ज़िन्दगी भर अलानिया ये कहती रही की रसूलल्लाहﷺ की इस दुआ के बाद दुन्या में बड़ी से बड़ी मुसीबत भी मुझ पर आ जाए तो मुझे उस की कोई परवा नही है।
*✍🏽सिरते मुस्तफा 280*
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