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Tuesday 12 July 2016

तफ़सीरे अशरफी


हिस्सा-36
*सूरए बक़रह_पारह 01*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*आयत ③⑤-तर्जुमह*
और फ़रमाया हमने के अय आदम ! रहो तुम और तुम्हारी बीवी जनन्तमे, और दोनों खाते रहो इससे बे-खटके जहा चाहो, और करीब न जाना इस शजर के, के हो जाओ अंधेरवालो से।

*तफ़सीर*
फरिश्तों और इब्लीस का इस तरह ये वाक़ेआ हुवा और हज़रते आदम का उधर ये वाक़ेआ हुवा के,
फ़रमाया ऐ आदम ! रहो तुम और तुम्हारी बीवी हव्वा भी जन्नत के सदा बहार बागमें। ये तुम दोनों का घर है। और दोनों खातेरहो इस जन्नत से कोइ रोक टॉक नहीं है। जहा से चाहो, ये सारा बाग़ तुम्हारा है। और इसका ख़याल रक्खो के क़रीब न जाना इसके साये से बचते रहना इस ख़ास गेहू यांगुर के दरख्त के। तुमको इसकी हवा न लगने पाए।
क्यू की इसके पास गए तो हो जाओ गे अंधेरवालो से। तुम नबीए मासूम (बे गुनाह नबी) हो। नाफ़रमानी तुमसे सोच भी नही सकते। मगर अपने आराम को छोड़ देना तुम्हारे लिये क्या कम अंधेरकि बात है?
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*​
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