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Sunday 10 July 2016

फुतूह अल ग़ैब

*आजमाइशे ओर उनसे खुलासी*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

हज़रत गौसुल आज़म رضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया के, बन्दा जब मुसिबीतो और बलाओं में गिरफ्तार होता है तो शुरूमे उससे छुटकारा हासिल करने के लिए खुद कोशिश करता है। लेकिन जब इस तरह मकसद बरारी नहीं होती तो बादशाह से, ओहदेदारों से और दूसरे दुनियादारो से और मालदारो से मदद मांगता है।
     बीमारी वगैरह के सिलसिले में तबीबो से रुजुअ करता है। जब तक अपनी कोशिश पर एतेमाद होता है, मख्लूकसे राबता कायम नहीं करता।फिर जब तक मख्लूकसे इआनत (सहारा) व् इमदाद की उम्मीद होती है। हुसूले इमदाद के लिए खालिक़ की तरफ तवज्जोह नहीं करता।
     मगर जब खालिक की तरफ से इसकी मदद नही होती तो सवाल, दुआ, आहोज़ारी और हम्द में मसरूफ़ हो जाता है और बीम दर्जे की इसी कैफियत में दुआकुन्ना होता है। फिर जब खुदावंदे तआला उसे इतना आजिज कर देता है के उसकी दुआको शर्फे कुबूल नहीं बख्शता और तमाम जाहिरी असबाब उससे छिन जाते है तो कजा व् कद्द के एहकामे इलाही उस पर नफिज़(जारी) होते है और वो तमाम असबाबे जाहिरी से  बेताल्लुक हो जाता है।
(cont...)
*✍🏽फुतुह अल ग़ैब 6,7*
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