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Thursday 5 January 2017

*जायज़-नाजायज़ की कसौटी और 11वी शरीफ*​ #11
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*इसाले षवाब-मुर्दो को षवाब पहचना* #04
*_दुआ में हाथ उठाना सुन्नत है_*
     अबू दाऊद की हदिष में है की, हुज़ूरﷺ ने अपने हाथ दुआ के लिये उठाये और अल्लाह की बारगाह में अर्ज़ किया : ऐ अल्लाह ! अपनी रहमत और सलवात सअद की आल पर नाज़िल फरमा।
     रावी कहता है की , हुज़ूरﷺ ने खाने पर हाथ उठा कर दुआ की इसके बाद खाना खाया। हुज़ूरﷺ सअद बिन उबादाرضي الله تعالي عنه के लिए बरकत की दुआ फरमान चाहते थे, इसलिये हुज़ूरﷺ ने बरकत की दुआ फ़रमाई और हम अपने मरहुमो के लिये मग्फिरत चाहते है इस लिए हम मग्फिरत की दुआ करते है, या किसी बुज़ुर्ग के लिए दुआ करना चाहते है इस लिए उनके बुलंद दर्जात की दुआ करते है।

     *सवाल :* कुछ लोग कहते है की फातिहा वगैरा हिन्दुओ जिस काम है। क्यू की वो लोग भी मुर्दो की 13वी करते है, और हदिष में है की जो किसी क़ौम से मुशाबहत (एकरूपता) करे वो उन में से है। इसलिए ये फातिहा मन है, इस बारे में क्या फरमाते है ?
     *जवाब :* गेर मुस्लिम से हर मुशाबहत मना नही बल्कि बुरी बातो में मुशाबहत मन है। फिर ये भी ज़रूरी है की वो काम ऐसा हो जो गेर मुस्लिमो की धार्मिक पहचान बन चुकी है, जिसको देख कर लोग उसे गेर मुस्लिम समझे, जेसे धोती, चोटी वगैरा। वरना हम भी आबे जम जम मक्का से लाते है, हिन्दू लोग भी गंगा जल लाते है, हम मुह से कहते है और पाँव से चलते है, वो लोग भो ऐसे ही खाते और चलते है।
     हुज़ूरﷺ ने आशूरा के दिन (10 मुहर्रम) के रोज़े का हुक्म दिया था, जबकि उसमे यहूदियो की मुशाबहत थी क्यू की वो लोग भी आशूरा का रोज़ा रखते थे। फिर आपﷺ ने फ़रमाया "हम दो रोज़े रख्खेंगे" कुछ फर्क कर दिया, मगर उसको बंद न किया।
     इसी तरह हमारे यहाँ क़ुरआन, दुरुद व सलाम पढ़ा जाता है। हिन्दुओ के यहाँ ये नही होता। फिर मुशाबहत कहा रही ?
*✍🏽जायज़-नाजायज़ की कसौटी और 11वी शरीफ, 11*
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