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Sunday 15 January 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #129
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑦⑤_*
     वो लोग है जिन्होंने हिदायत के बदले गुमराही मोल ली और बख़्शिश (इनाम) के बदले अज़ाब तो किस दर्जा उन्हें आग की सहार है.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑦⑥_*
     ये इसलिये कि अल्लाह ने किताब हक़ के साथ उतारी, और बेशक जो लोग किताब से इख़्तिलाफ (मतभेद) डालने लगे वो ज़रूर पहले सिले के झगड़ालू हैं.
*तफ़सीर*
     यह आयत यहूदियों के बारे में उतरी कि उन्होंने तौरात में विरोध किया. कुछ ने उसको सच्चा कहा, कुछ ने बातिल, कुछ ने ग़लत सलत मतलब जोड़े, कुछ ने इबारत बदल डाली. एक क़ौल यह है कि यह आयत शिर्क करने वालों के बारे में नाज़िल हुई. उस सूरत में किताब से मुराद क़ुरआन है और उनका विरोध यह है कि उनमें से कुछ इसको शायरी कहते हैं, कुछ जादू, कुछ टोना टोटका.
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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