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Saturday 21 January 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #132
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑧ⓞ_*
     तुमपर फ़र्ज़ हुआ कि जब तुम में किसी को मौत आए अगर कुछ माल छोड़े वसीयत करजाए अपने माँ  बाप और क़रीब के रिश्तेदारों के लिए दस्तूर के अनुसार यह वाजिब है परहेज़गारों पर.
*तफ़सीर*
     यानी शरीअत के क़ानून के मुताबिक़ इन्साफ़ करे और एक तिहाई माल से ज़्यादा की वसिय्यत न करे और मुहताजों पर मालदारों को प्राथमिकता न दें. इस्लाम की शुरूआत में यह वसिय्यत फ़र्ज़ थी. जब मीरास यानी विरासत के आदेश उतरे, तब स्थगित की गई. अब ग़ैर वारिस के लिये तिहाई से कम में वसिय्यत करना मुस्तहब है. शर्त यह है कि वारिस मुहताज न हों, या तर्का मिलने पर मुहताज न रहें, वरना तर्का वसिय्यत से अफ़ज़ल है. (तफ़सीरे अहमद)

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑧①_*
     तो जो वसीयत को सुन सुनकर बदल दे (11)
उसका गुनाह उन्हीं बदलने वालों पर है (12)
बेशक अल्लाह सुनता जानता है.
*तफ़सीर*
     (11) चाहे वह व्यक्ति हो जिसके नाम kवसिय्यत की गई हो, चाहे वली या सरपरस्त हो, या गवाह. और वह तबदीली वसिय्यत की लिखाई में करे या बँटवारे में या गवाही देने में. अगर वह वसिय्यत शरीअत के दायरे में है तो बदलने वाला गुनहगार होगा.
     (12) और दूसरे, चाहे वह वसिय्यत करने वाला हो या वह जिसके नाम वसिय्यत की गई है, बरी हैं.
*___________________________________*
मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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