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Friday 27 January 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #137
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑧⑦_*
     रोज़ों की रातों में अपनी औरतों के पास जाना तुम्हारे लिये हलाल (वेद्य) हुआ (12)
वो तुम्हारी लिबास हैं और तुम उनके लिबास, अल्लाह ने जाना कि तुम अपनी जानों को ख़यानत (बेईमानी) में डालते थे तो उसने तुम्हारी तौबह क़ुबूल की और तुम्हें माफ़ फ़रमाया (13)
तो अब उनसे सोहबत करो (14)
और तलब करो जो अल्लाह ने तुम्हारे नसीब में लिखा हो (15)
और खाओ और पियो (16)
यहां तक कि तुम्हारे लिये ज़ाहिर हो जाए सफ़ेदी का डोरा सियाही के डोरे से पौ फटकर (17)
फिर रात आने तक रोज़े पूरे करो (18)
और औरतों को हाथ न लगाओ जब तुम मस्जिदों में एतिक़ाफ़ में हो  (यानि दुनिया से अलग थलग बैठे हो ) (19)
ये अल्लाह की हदें हैं, इनके पास न जाओ अल्लाह यूं ही बयान करता है लोगों से अपनी आयतें की कहीं उन्हें परहेज़गारी मिले.
*तफ़सीर*
     (12) पिछली शरीअतों में इफ़्तार के बाद खाना पीना सहवास करना ईशा की नमाज़ तक हलाल था, ईशा बाद ये सब चीज़ें रात में भी हराम हो जातीं थी. यह हुक्म सरकार सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के ज़मानए अक़दस तक बाक़ी था. कुछ सहाबा ने रमज़ान की रातों में नमाज़ ईशा के बाद सहवास किया, उनमें हज़रत उमर रदियल्लाहो अन्हो भी थे. इसपर वो हज़रात लज्जित हुए और रसूले अकरम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से अपना हाल अर्ज़ किया. अल्लाह तआला ने माफ़ फ़रमाया और यह आयत उतरी और बयान कर दिया गया कि आयन्दा के लिये रमज़ान की रातों में मग़रिब से सुबह सादिक़ तक अपनी पत्नी के साथ सहवास हलाल किया गया.
     (13) इस ख़यानत से वह सहवास मुराद है जो इजाज़त मिलने से पहले के रमज़ान की रातों में मुसलमानों ने किया. उसकी माफ़ी का बयान फ़रमाकर उनकी तसल्ली फ़रमा दी गई.
     (14) यह बात इजाज़त के लिये है कि अब वह पाबन्दी उठाली गई और रमज़ान की रातों में सहवास हलाल कर दिया गया.
     (15) इसमें हिदायत है कि सहवास नस्ल और औलाद हासिल करने की नियत से होना चाहिये, जिससे मुसलमान बढ़ें और दीन मज़बूत हो. मुफ़स्सिरीन का एक क़ौल यह भी है कि मानी ये है कि सहवास शरीअत के हुक्म के मुताबिक़ हो जिस महल में जिस तरीक़े से इजाज़त दी गई उससे आगे न बढ़ा जाए. (तफ़सीरे अहमदी). एक क़ौल यह भी है जो अल्लाह ने लिखा उसको तलब करने के मानी हैं रमज़ान की रातों में इबादत की कसरत (ज़्यादती) और जाग कर शबे-क़द्र की तलाश करना.
     (16) यह आयत सरमआ बिन क़ैस के बारे में उतरी. आप महनती आदमी थे. एक दिन रोज़े की हालत में दिन भर अपनी ज़मीन में काम करके शाम को घर आए. बीवी से खाना माँगा. वह पकाने में लग गई यह थके थे आँख लग गई. जब खाना तैयार करके उन्हें बेदार किया उन्होंने खाने से इन्कार कर दिया क्योंकि उस ज़माने में सोजाने के बाद रोज़ेदार पर खाना पीना बन्द हो जाता था और उसी हालत में दूसरा रोज़ा रख लिया. कमजोरी बहुत बढ गई. दोपहर को चक्कर आ गया. उनके बारे में यह आयत उतरी और रमज़ान की रातों में उनके कारण खाना पीना हलाल किया गया, जैसे कि हज़रत उमर रदियल्लाहो अन्हो की अनाबत और रूजू के सबब क़ुर्बत हलाल हुई.
     (17) रात को सियाह डोरे से और सुबह सादिक़ को सफ़ेद डोरे से तशबीह दी गई. मानी ये हैं कि तुम्हारे लिये खाना पीना रमज़ान की रातों में मग़रिब से सुबह सादिक़ तक हलाल कर दिया गया. (तफ़सीरे अहमदी). सुबह सादिक़ तक इजाज़त देने में इशारा है कि जनाबत या शरीर की नापाकी रोज़े में रूकावट नहीं है. जिस शख़्स को नापाकी के साथ सुबह हुई, वह नहाले, उसका रोज़ा जायज़ है. (तफ़सीरे अहमदी). इसी से उलमा ने यह मसअला निकाला कि रमज़ान के रोज़े की नियत दिन में जायज़ है.
     (18) इससे रोज़े की आख़िरी हद मालूम होती है और यह मसअला साबित होता है कि रोज़े की हालत में खाने पीने और सहवास में से हर एक काम करने से कफ़्फ़ारा लाज़िम हो जाता है (मदारिक). उलमा ने इस आयत को सौमे विसाल यानी तय के रोज़े यानी एक पर एक रोज़ा रखने की मनाही की दलील क़रार दिया है.
     (19) इस में बयान है कि रमज़ान की रातों में रोज़ेदार के लिये बीवी से हमबिस्तरी हलाल है जब कि वह मस्जिद में एतिकाफ़ में न बैठा हो. एतिकाफ़ में औरतों से कुरबत और चूमा चाटी, लिपटाना चिपटाना सब हराम हैं. मर्दों के एतिकाफ़ के लिये मस्जिद ज़रूरी है. एतिकाफ़ में बैठे आदमी को मस्जिद में खाना पीना सोना जायज़ है. औरतों का एतिकाफ़ उनके घरों में जायज़ है. एतिकाफ़ हर ऐसी मस्जिद में जायज़ है जिसमें जमाअत क़ायम हो. एतिकाफ़ में रोज़ा शर्त है.
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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