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Thursday 12 January 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #126
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑦①_*
     और क़ाफिरों की कहावत उसकी सी है जो पुकारे ऐसे को कि ख़ाली चीख़ पुकार के सिवा कुछ न सुने (4)
बहरे गूंगे अंधे तो उन्हें समझ नहीं (5)
*तफ़सीर*
     (4) यानी जिस तरह चौपाए चरवाहे की सिर्फ़ आवाज़ ही सुनते हैं, कलाम के मानी नहीं समझते, यही हाल उन काफ़िरों का है कि रसूले अकरम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की आवाज़ को सुनते हैं, लेकिन उसके मानी दिल में बिठाकर आपके इरशाद से फ़ायदा नहीं उठातें.
     (5)  यह इसलिये कि वो सच्ची बात सुनकर लाभ न उठा सके, सच्ची बात उनकी ज़बान पर जारी न हो सकी, नसीहतों से उन्होंने कोई फ़ायदा न उठाया.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑦②_*
     ऐ ईमान वालो खाओ हमारी दी हुई सुथरी चीजें  और अल्लाह का अहसान जानो अगर तुम उसी को पूजते हो.
*तफ़सीर*
     इस आयत से मालूम हुआ कि अल्लाह तआला की नेअमतों पर शुक्र वाजिब है.
*_____________________________________*
मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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