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Sunday 29 January 2017

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #138
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑧⑧_*
     और आपस में एक दूसरे का माल नाहक़ ना खाओ और ना हाक़िमों के पास उनका मुक़दमा इसलिये पहुंचाओ कि लोगों का कुछ माल नाज़ायज़ तौर पर खालो जानबूझकर.

*तफ़सीर*
     इस आयत में बातिल तौर पर किसी का माल खाना हराम फ़रमाया गया है, चाहे वह लूट कर छीन कर या चोरी से या जुए से या हराम तमाशों से या हराम कामों या हराम चीज़ों के बदले या रिशवत या झूटी गवाही या चुग़लख़ोरी से, यह सब मना और हराम है.
     इससे मालूम हुआ कि नाजायज़ फ़ायदे के लिये किसी पर मुक़दमा बनाना और उसको हाकिम तक लेजाना हराम और नाजायज़ है.
     इसी तरह अपने फ़ायदे के लिये दूसरे को हानि पहुंचाने के लिये हाकिम पर असर डालना, रिशवत देना हराम है. हाकिम तक पहुंच वाले लोग इन आदेशों को नज़र में रख़ें. हदीस शरीफ़ में मुसलमानों को नुक़सान पहुंचाने वाले पर लानत आई है.
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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