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Friday 13 January 2017

*​​फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा​​​​​* #12
*आइशा और वाक़ीआए इफ्क* #01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_वाक़ीआए इफ्क क्या है ?_*
     ये वाक़ीआ गज़्वाए बनी मुस्तलिक से वापसी पर हुआ। इसकी तफ़सील बयान करते हुए उम्मुल मुअमिनिन हज़रते आइशा सिद्दीक़ाرضي الله تعالي عنها इरशाद फरमाती है : सरवरे काएनातﷺ जब किसी सफर का इरादा फरमाते तो अपनी अज़्वाजे मुतह्हरात के दरमियान कुरआ अंदाज़ी फरमाते उन में जिसका नाम निकल आता उसको अपने साथ सफर में ले जाते।
     आपﷺ ने गज़्वे में शिर्कत के लिये हमारे दरमियान तो उसमे मेरा नाम निकल आया, आयते हिजाब के नुज़ूल के बाद में रसूलुल्लाहﷺ के हमराह निकली। में कजावा में सुवार रहती और इसी में सफर करती। हम चले हत्ता की हुज़ूरﷺ उस गज़्वे से फारिग हो कर वापस हुए, हम वापसी पर जब मदीना के क़रीब आ गए तो आप ने उस रात वहा से कूच का ऐलान फ़रमाया।
     जब लोगो ने कूच का ऐलान किया तो में खड़ी हुई (और कज़ाए हाजत के लिये) लश्कर से दूर गई। जब में कज़ाए हाजत से फारिग हो कर अपने कजावे की तरफ वापस आई तो में ने अपने सीने को मस किया, क्या देखती हु के मेरा हार गम हो गया है में वापस अपने हार की तलाश में गई तो उसकी तलाश में देर हो गई और वो लोग जो मेरा कजावा उठाते थे आए, उन्होंने मेरा कजवा उठाया और ऊंट पर रख दिया उनका ख्याल था की में हौदज में हु। मुझे हार मिला और वापस लौटी तो देखा की लश्कर जा चूका था। मेने उस जगह का इरादा किया जहा में थी और मेरा ख्याल था की वो मुझे गुम पा कर मेरी तरफ वापस आएँगे इसी अस्ना में बेठे बेठे मुझ पर नींद ग़ालिब हुई और में सो गई।

बाक़ी अगली पोस्ट में.. ان شاء الله
*✍🏽फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा, 41*
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मिट जाए गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाये यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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