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Thursday 4 May 2017

*​तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान​* #198
*​بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ​*
*​اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ​*

*_​​सूरतुल बक़रह, रुकूअ-35, आयत ②⑥③_*
     अच्छी बात कहना और दरगुज़र  (क्षमा) करना (6) उस ख़ैरात से बेहतर है जिसके बाद सताना हो  (7) और अल्लाह बे-परवाह हिल्म  (सहिष्णुता) वाला है.

*तफ़सीर*
     (6) यानी अगर सवाल करने वाले को कुछ न दिया जाए तो उससे अच्छी बात कहना और सदव्यवहार के साथ जवाब देना, जो उसको नाग़वार न गुज़रे और अगर वह सवाल किये ही जाए या ज़बान चलाए, बुरा भला कहने लगे, तो उससे मुंह फेर लेना.
     (7) शर्म दिला कर या एहसान जताकर या और कोई तकलीफ़ पहुंचा कर.
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मिट जाये गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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