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Friday 5 May 2017

*​तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान​* #199
*​بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ​*
*​اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ​*

*_​​सूरतुल बक़रह, रुकूअ-35, आयत ②⑥④_*
     ऐ ईमान वालो अपने सदक़े  (दान) बातिल न करदो एहसान रखकर और ईजा (दुख:) देकर (8) उसकी तरह जो अपना माल लोगों के दिखावे के लिए ख़र्च करे और अल्लाह क़यामत पर ईमान न लाए तो उसकी कहावत ऐसी है जैसे एक चट्टान कि उसपर मिट्टी है अब उसपर ज़ोर का पानी पड़ा जिसने उसे निरा पत्थर कर छोड़ा (9) अपनी कमाई से किसी चीज़ पर क़ाबू न पाएंगे और अल्लाह काफ़िरों को राह नहीं देता.

*तफ़सीर*
     (8) यानी जिस तरह मुनाफ़िक़ को अल्लाह की रज़ा नहीं चाहिये, वह अपना माल रियाकारी यानी दिखावे के लिये ख़र्च करके बर्बाद कर देता है, इसी तरह तुम एहसान जताकर और तकलीफ़ देकर अपने सदक़ात और दान का पुण्य तबाह न करो.
     (9) ये मुनाफ़िक़ रियाकर के काम की मिसाल है कि जिस तरह पत्थर पर मिट्टी नज़र आती है लेकिन बारिश से वह सब दूर हो जाती है, ख़ाली पत्थर रह जाता है, यही हाल मुनाफ़िक़ के कर्म का है और क़यामत के दिन वह तमाम कर्म झूटे ठहरेंगे, क्योंकि अल्लाह की रज़ा और ख़ुशी के लिये न थे.
*📮षवाब की निय्यत से शेर करे*
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मिट जाये गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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