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Monday 1 May 2017

*​तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान​* #195
*​بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ​*
*​اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ​*

*_​​सूरतुल बक़रह, रुकूअ-35, आयत ②⑥ⓞ_*
     और जब अर्ज़ की इब्राहीम ने (8) ऐ रब मेरे मुझे दिखादे तू किस तरह मुर्दें जिलाएगा, फ़रमाया क्या तुझे यक़ीन नहीं(9) अर्ज़ की यक़ीन क्यों नहीं मगर यह चाहता हूँ कि मेरे दिल को क़रार आजाए (10) फ़रमाया तो अच्छा चार परिन्दे लेकर अपने साथ हिला ले (11) फिर उनका एक एक टुकड़ा हर पहाड़ पर रख दे फिर उन्हें बुला वो तेरे पास चले आएंगे पाँव से दौड़ते (12) जान रख कि अल्लाह ग़ालिब हिकमत वाला है।

*तफ़सीर*
     (8) मुफ़स्सिरों ने लिखा है कि समन्दर के किनारे एक आदमी मरा पड़ा था. ज्वार भाटे में समन्दर का पानी चढ़ता उतरता रहता है. जब पानी चढ़ता तो मछलियाँ उसकी लाश को खातीं, जब उतर जाता तो जंगल के दरिन्दे खाते, जब दरिन्दे जाते तो परिन्दे खाते. हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने यह देखा तो आपको शौक़ हुआ कि आप देखें कि मुर्दे किस तरह ज़िन्दा किये जाएंगे. आपने अल्लाह तआला की बारगाह में अर्ज़ किया, या रब मुझे यक़ीन है कि तू मुर्दों को ज़िन्दा फ़रमाएगा और उनके अंग दरियाई जानवरों और दरिन्दों के पेट और परिन्दों के पेटों से जमा फ़रमाएगा. लेकिन मैं यह अजीब दृश्य देखने की इच्छा रखता हुँ. मुफ़स्सिरीन का एक क़ौल यह भी है कि जब अल्लाह तआला ने हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को अपना ख़लील यानी दोस्त किया, मौत के फ़रिश्ते इज़्राईल अलैहिस्सलाम अल्लाह तआला से इजाज़त लेकर आपको यह ख़ुशख़बरी देने आए. आपने बशारत सुनकर अल्लाह की तारीफ़ की और फ़रिश्ते से फ़रमाया कि इस ख़ुल्लत यानी ख़लील बनाए जाने की निशानी क्या है ? उन्होंने अर्ज़ किया, यह कि अल्लाह तआला आपकी दुआ क़ुबूल फ़रमाए और आपके सवाल पर मुर्दे ज़िन्दा कर दे. तब आपने यह दुआ की. (ख़ाज़िन)
     (9) अल्लाह तआला हर ज़ाहिर छुपी चीज़ का जानने वाला है, उसको हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के ईमान और यक़ीन के कमाल यानी सम्पूर्णता का इल्म है. इसके बावजूद यह सवाल फ़रमाना कि क्या तुझे यक़ीन नहीं, इसलिये है कि सुनने वालों को सवाल का मक़सद मालूम हो जाए और वो जान लें कि यह सवाल किसी शक व शुबह की बुनियाद पर न था. (बैज़ावी व जुमल वग़ैरह)
     (10) और इन्तिज़ार की बेचैनी दूर हो. हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया, मानी ये हैं कि इस निशानी से मेरे दिल को तसल्ली हो जाए कि तूने मुझे अपना ख़लील यानी दोस्त बनाया.
     (11) ताकि अच्छी तरह पहचान हो जाए.
     (12) हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने चार चिड़ियाँ लीं, मोर, मुर्ग़, कबूतर और कौवा. उन्हें अल्लाह के हुक्म से ज़िब्ह किया, उनके पर उख़ाड़े और क़ीमा करके उनके अंग आपस में मिला दिये और इस मजमूए के कई हिस्से किये. एक एक हिस्से को एक एक पहाड़ पर रखा और सबके सर अपने पास मेहफ़ूज रखे. फिर फ़रमाया, चले आओ अल्लाह के हुक्म से. यह फ़रमाना था, वो टुकडे दौड़े और हर हर जानवर के अंग अलग अलग होकर अपनी तरतीब से जमा हुए और चिड़ियाँ की शक्लें बनकर अपने पाँव से दौड़ते हुए हाज़िर हुए और अपने अपने सरों से मिलकर जैसे पहले थे वैसे ही सम्पूर्ण बनकर उड़ गए. सुब्हानल्लाह !
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मिट जाये गुनाहो का तसव्वुर ही दुन्या से,
गर होजाए यक़ीन के.....
*अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह देख रहा है...*
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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