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Tuesday 25 October 2016

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #59
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
*_सूरतुल बक़रह, आयत ⑥⑤_*
और बेशक ज़रूर तुम्हें मालूम है तुम में के वो जिन्होंने हफ्ते (शनिवार) में सरकशी की तो हमने उनसे फ़रमाया कि हो जाओ बन्दर धुत्कारे हुए

*तफ़सीर*
     इला शहर में बनी इस्राईल आबाद थे उन्हें हुक्म था कि शनिवार का दिन इबादत के लिये ख़ास कर दें, उस रोज़ शिकार न करें, और सांसारिक कारोबार बन्द रखें. उनके एक समूह ने यह चाल की कि शुक्रवार को दरिया के किनारे बहुत से गढ़े खोदते और सनीचर की सुबह को दरिया से इन गढ़ो तक नालियां बनाते जिनके ज़रिये पानी के साथ मछलियां आकर गढ़ों में कै़द हो जातीं. इतवार को उन्हें निकालते और कहते कि हम मछली को पानी से सनीचर के दिन नहीं निकालतें.
     चालीस या सत्तर साल तक यह करते रहे. जब हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम की नबुव्वत का एहद आया तो आपने उन्हें मना किया और फ़रमाया कि क़ैद करना ही शिकार है, जो सनीचर को करते हो, इससे हाथ रोको वरना अज़ाब में गिरफ़्तार किये जाओगे.  वह बाज़ न आए. आपने दुआ फ़रमाई. अल्लाह तआला ने उन्हें बन्दरों की शक्ल में कर दिया, उनकी अक्ल और दूसरी इन्द्रियाँ (हवास) तो बाक़ी रहे, केवल बोलने की क़ुव्वत छीन ली गई. शरीर से बदबू निकलने लगी. अपने इस हाल पर रोते रोते तीन दिन में सब हलाक हो गए. उनकी नस्ल बाक़ी न रही. ये सत्तर हज़ार के क़रीब थे.
     बनी इ्स्रईल का दूसरा समूह जो बारह हज़ार के क़रीब था, उन्हें ऐसा करने से मना करता रहा. जब ये न माने तो उन्होंने अपने और उनके मुहल्लों के बीच एक दीवार बनाकर अलाहिदगी कर ली. इन सबने निजात पाई.
     बनी इस्राईल का तीसरा समूह ख़ामोश रहा, उसके बारे में हज़रत इब्ने अब्बास के सामने अकरमह ने कहा कि वो माफ़ कर दिये गए क्योंकि अच्छे काम का हुक्म देना फ़र्जे किफ़ाया है, कुछ ने कर लिया तो जैसे कुल ने कर लिया. उनकी ख़ामोशी की वजह यह थी कि ये उनके नसीहत मानने की तरफ़ से निराश थे. अकरमह की यह तक़रीर हज़रत इब्ने अब्बास को बहुत पसन्द आई और आप ख़ुशी से उठकर उनसे गले मिले और उनका माथा चूमा.
*✍🏽फ़त्हुल अज़ीज़*
     इससे मालूम हुआ कि ख़ुशी में गले मिलना रसूलुल्लाह के साथियों का तरीक़ा है. इसके लिये सफ़र से आना और जुदाई के बाद मिलना शर्त नहीं.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ⑥⑥_*
तो हमने (उस बस्ती का) ये वाक़िया (घटना) उसके आगे और पीछे वालों के लिये इबरत कर दिया और परहेज़गारों के लिये नसीहत
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