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Saturday 15 October 2016

*सज्दए तिलावत के मदनी फूल* #02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

सज्दा वाजिब होने के लिये पूरी आयत पढ़ना ज़रूरी है लेकिन बाज़ उल्माए मूतअख्खिर के नज़्दीक वो लफ्ज़ जिसमे सज्दे का माद्दा पाया जाता है उसके साथ क़ब्ल या बाद का कोई लफ्ज़ मिला कर पढ़ा तो सज्दए तिलावत वाजिब हो जाता है लिहाज़ा एहतियात येही है कि दोनों सूरतो में सज्दए तिलावत किया जाए।
*✍🏽मूलख्खसन फतावा रज़विय्या* 8/223

आयते सज्दा बैरूने नमाज़ पढ़ी तो फौरन सज्दा कर लेना वाजिब नहीं है अलबत्ता वुज़ू हो तो ताख़ीर मकरुहे तन्ज़ीहि है।

सज्दए तिलावत नमाज़ में फौरन करना वाजिब है मगर ताख़ीर की यानी तिन आयात से ज़्यादा पढ़ लिया तो गुनाहगार होगा और जब तक नमाज़ में है या सलाम फेरने के बाद कोई नमाज़ के मुनाफि फेल नही किया तो सज्दए तिलावत करके सज्दए सहव बजा लाए।
*✍🏽दुर्रेमुखतार मअ रद्दलमोहतार* 2/584
*✍🏽नमाज़ के अहकाम* स.212
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*​DEEN-E-NABI ﷺ*
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