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Thursday 13 October 2016

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #58
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ⑥④_*
फिर उसके बाद तुम फिर गए तो अगर अल्लाह की कृपा और उसकी रहमत तुम पर न होती तो तुम टोटे वालों में हो जाते

*तफ़सीर*
     यहाँ फ़ज़्ल व रहमत से या तौबह की तौफ़ीक़ मुराद है या अज़ाब में विलम्ब (देरी.) एक कथन यह भी है कि अल्लाह की कृपा और रहमत से हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की पाक ज़ात मुराद हैं. मानी ये है कि अगर तुम्हें नबियों के सरदार सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के वुजूद (अस्तित्व) की दौलत न मिलती और आपका मार्गदर्शन नसीब न होता तो तुम्हारा अंजाम नष्ट होना और घाटा होता.
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