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Tuesday 18 October 2016

*सवानहे कर्बला​* #40
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_हज़रते इमामे आली मक़ाम की शहादत_* #01
     अब तक जां निषार एक एक करके रुख्सत हो चुके और हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه पर जाने क़ुरबान कर गए, अब तन्हा हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه है और एक फ़रज़न्द हज़रते ज़ैनुल आबेदीनرضي الله تعالي عنه वो भी बीमार व ज़ईफ़। बा वुजूद इस ज़ोफ़् व नाताक़ति के ख़ैमे से बाहर आए और हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه को तन्हा देख कर मसाफ़े कारज़ार जाने और अपनी जान निषार करने के लिये नेज़ा दस्ते मुबारक में लिया लेकिन बिमारी, सफर की कोफ़्त, भूक प्यास, फाक़ो और पानी की तकलीफो से ज़ोफ़् इस दर्जे तरक़्क़ी कर गया था की खड़े होने से बदन मुबारक लरजता था बा वुजूद इसके हिम्मते मर्दाना का ये हाल था की मैदान का अज़्म कर दिया।
     हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया : लौट आओ, मैदान जाने का क़स्द न करो, में कुम्बा क़बीला, अज़ीज़ों अक़ारिब, खुद्दाम जो हमराह थे राहे हक़ में निषार कर चूका। तुम्हारी ज़ात के साथ बहुत उम्मीदे वाबस्ता है, बे कसाने अहले बैत को वतन तक कौन पहुचाएगा ? बीवियों की निगहदष्ट कौन करेगा ? क़ुरआन की मुहाफ़ज़त और हक़ की तबलीग का फ़र्ज़ किस के सर पर रखा जाएगा ? मेरी नस्ल किस्से चलेगी ? ये सब तुम्हारी ज़ात से वाबस्ता है। दुदमाने रिसालत व नबुव्वत के आखरी चराग तुम ही हो। ऐ नुरे नज़र ! लखते जिगर ! ये तमाम काम तुम्हारे ज़िम्मे किये जाते है, मेरे बाद तुम ही मेरे जानशीन होंगे, तुम्हे मैदान जाने की ज़रूरत नही है।

     हज़रते ज़ैनुल आबेदीनرضي الله تعالي عنه ने जो अर्ज़ किया, वो अगली पोस्ट में.. ان شاء الله
*✍🏽सवानहे कर्बला, 162*
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