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Monday 10 October 2016

*सवानहे कर्बला​* #18
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_शहादत के वाक़ीआत_*
*_​​हज़रते इमामे हुसैन की कूफा को रवानगी_*​​ #04
     यहाँ तो मुसाफिराने बे वतन का सामान बे तरतीब पड़ा है और उधर हज़ार सुवार का मुसल्लह लश्कर मुक़ाबला खैमाज़न है जो अपने मेहमानो को नेज़ो की नोकें और तलवारो की धारो दिखा रहा है और बजाए आदाबे मेज़बानी के खुँख्वारि पर तुला हुवा है। दरियाए फुरात के क़रीब दोनों लश्कर थे और दरियाए फुरात का पानी दोनों लशकरो में से किसी को सैराब न कर सका। इमामرضي الله تعالي عنه के लश्कर को तो इस का एक क़तरा पहुचना ही मुश्किल हो गया और यज़ीदी लश्कर जितने आते गए इन सब को अहले बैते रिसालत के बे गुनाह खून की प्यास बढ़ती गई। आबे फुरात से इन की तिशनगी में कोई फर्क न आया।
     अभी इत्मीनान से बैठने और थकान दूर करने की सूरत भी नज़र न आई थी की हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه की खिदमत में इब्ने ज़ियाद का एक मकतूब पंहुचा जिस में उसने हज़रते इमाम से यज़ीदे नापाक की बैअत तलब की थी। हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه ने वो खत पढ़ कर डाल दिया और क़ासिद से कहा मेरे पास इस का कुछ जवाब नही।
     यज़ीद की बैअत को कोई भी वाकिफ हाल दीनदार आदमी गवारा नही कर सकता था न वो बैअत किसी तरह जाइज़ थी। इमाम को इन बे हयाओ की इस जुरअत पर हैरत थी और इसी लिये आप ने फ़रमाया की मेरे पास इसका कुछ जवाब नही है। इससे इब्ने ज़ियाद का तैश और ज़्यादा हो गया और उस ने मज़ीद असाकिर व अफवाज तरतीब दिये और इन लशकरो का सिपह सालार उमर बीन साद को बनाया जो उस ज़माने में मुल्के रै का गवर्नर था। रै खुरासान का एक शहर है जो आज कल ईरान माँ दारुस्सलतन्त है और इस को तेहरान कहते है।

बाक़ी अगली पोस्ट में.. انشاء الله
*✍🏽सवानहे कर्बला, 132*
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