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Friday 14 October 2016

*सवानहे कर्बला​* #30
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_शहादत के वाक़ीआत_* #10
     हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه की इस सदा ने हूर की पाउ की बेड़िया काट दी, दिले बेताब को क़रार बख्शा और इत्मीनान हुवा की शाहज़ादए कौनैन हज़रते इमाम हुसैनرضي الله تعالي عنه मेरी पहली जुरअत से चश्म पोशी फरमाए तो अजब नही, करीम ने करम से बशारत दी है, जान फ़िदा करने के इरादे से चल पड़ो।
     हूर बिन यज़ीद ने घोडा दौड़ाया और इमामرضي الله تعالي عنه की खिदमत में हाज़िर हो कर घोड़े से उतर कर अर्ज़ की ऐ इब्ने रसूल ! में वही हूर हु जो पहले आप के मुक़ाबिल आया और जिस ने आप को इस मैदाने बयाबान में रोका। अपनी इस हरकत पर नादिम हु, शर्मिंदगी नज़र नही उठाने देती, आप की करिमाना सदा सुन कर उम्मीदों ने हिम्मत बंधाई तो हाज़िरे खिदमत हुवा हु, आप के करम से इस जुर्म की मुआफ़ी फरमाए और गुलामो में शामिल करे और अपने अहले बैत पर जान कुर्बान करने की इजाज़त दे।
     हज़रते इमामرضي الله تعالي عنه ने हूर के सर पर दस्ते मुबारक रखा और फ़रमाया : ऐ हूर ! बारगाहे इलाही में इख्लास मंदो के इस्तिग़फ़ार मक़बूल है और तौबा मुस्तजाब, उज़्र ख्वाह महरूम नही जाते, *और वही है जो अपने बन्दों की तौबा क़बूल फ़रमाता है* (पारह25), मेने तेरी तकसीर मुआफ़ की और इस सआदत के हुसूल की इजाज़त दी।

हूर इजाज़त पा कर मैदान की तरफ रवाना हुआ, बाक़ी अगली पोस्ट में.. ان شاء الله
*✍🏽सवानहे कर्बला, 148*
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