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Wednesday 26 October 2016

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #60
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
*_सूरतुल बक़रह, आयत ⑥⑦_*
और जब मूसा ने अपनी कौम से फ़रमाया खुदा तुम्हें हुक्म देता है कि एक गाय ज़िब्ह करो(7)
बोले की आप हमें मसख़रा बनाते हैं (8)
फ़रमाया ख़ुदा की पनाह कि मैं जाहिलों से हूं(9)

*तफ़सीर*
     (7) बनी इस्राईल में आमील नाम का एक मालदार था. उसके चचाज़ाद भाई ने विरासत के लालच में उसको क़त्ल करके दूसरी बस्ती के दर्वाजे़ पर डाल दिया और ख़ुद सुबह को उसके ख़ून का दावेदार बना. वहां के लोगों ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से विनती की कि आप दुआ फ़रमाएं कि अल्लाह तआला सारी हक़ीक़त खोल दे. इस पर हुक्म हुआ कि एक गाय ज़िब्ह करके उसका कोई हिस्सा मक़तूल (मृतक) को मारें, वह ज़िन्दा होकर क़ातिल का पता देगा.
     (8) क्योंकि मक़तूल (मृतक) का हाल मालूम होने और गाय के ज़िब्ह में कोई मुनासिबत (तअल्लुक़) मालूम नहीं होती.
      (9) ऐसा जवाब जो सवाल से सम्बन्ध न रखे जाहिलो का काम है. या ये मानी हैं कि मुहाकिमे (न्याय) के मौक़े पर मज़ाक उड़ाना या हंसी करना जाहिलों का काम है. और नबियों की शान उससे ऊपर है.
     बनी इस्राईल ने समझ लिया कि गाय का ज़िब्ह करना अनिवार्य है तो उन्होंने अपने नबी से उसकी विशेषताएं और निशानियाँ पूछीं. हदीस शरीफ़ में है कि अगर बनी इस्राईल यह बहस न निकालते तो जो गाय ज़िब्ह कर देते, काफ़ी हो जाती.
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