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Monday 10 October 2016

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #57
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
*_सूरतुल बक़रह, आयत ⑥③_*
और जब हमने तुमसे एहद लिया (2)
और तुम पर तूर (पहाड़) को ऊंचा किया (3)
और जो कुछ हम तुमको देते हैं ज़ोर से(4)
और उसके मज़मून याद करो इस उम्मीद पर कि तुम्हें परहेज़गारी मिले

*तफ़सीर*
     (2) कि तुम तौरात मानोगे और उस पर अमल करोगे. फिर तुमने उसे निर्देशों को बोझ जानकर क़ुबूल करने से इन्कार कर दिया. जबकि तुमने ख़ुद अपनी तरफ़ से हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से ऐसी आसमानी किताब की प्रार्थना की थी जिसमें शरीअत के क़ानून और इबादत के तरीक़े विस्तार से दर्ज हों. और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने तुमसे बार बार इसके क़ुबूल करने और इस पर अमल करने का एहद लिया था. जब वह किताब दी गई तो तुमने उसे क़ुबूल करने से इन्कार कर दिया और एहद पूरा न किया.
     (3) बनी इस्राईल के एहद तोड़ने के बाद हज़रत जिब्रील ने अल्लाह के हुक्म से तूर पहाड़ को उठाकर उनके सरों पर लटका दिया और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया तुम एहद क़ुबूल करो वरना ये पहाड़ तुमपर गिरा दिया जाएगा, और तुम कुचल डाले जाओगे. वास्तव में पहाड़ का सर पर लटका दिया जाना अल्लाह की निशानी और उसकी क़ुदरत का खुला प्रमाण है. इससे दिलों को इत्मीनान हासिल होता है कि बेशक यह रसूल अल्लाह की क़ुव्वत और क़ुदरत के ज़ाहिर करने वाले हैं. यह इत्मीनान उनको मानने और एहद पूरा करने का अस्ल कारण है.
     (4) यानी पूरी कोशिश के साथ.
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