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Saturday 8 October 2016

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
*_सूरतुल बक़रह, आयत ⑥①_*
और जब तुमने कहा ऐ मूसा (4)
हम से तो एक खाने पर(5)
कभी सब्र न होगा तो आप अपने रब से दुआ की, कि ज़मीन की उगाई हुई चीज़ें हमारे लिये निकाले कुछ साग और ककड़ी और गेंहूं और मसूर और प्याज़.
फ़रमाया क्या मामूली चीज़ को बेहतर के बदले मांगते हो(6)
अच्छा मिस्त्र(7)
या किसी शहर में उतरो वहां तुम्हें मिलेगा जो तुमने मांगा(8)
और उनपर मुक़र्रर कर दी गई ख्व़ारी (ज़िल्लत) और नादारी (9)
और ख़ुदा के ग़ज़ब में लौटे(10)
ये बदला था उसका कि वो अल्लाह की आयतों का इन्कार करते और नबियों को नाहक़ शहीद करते (11)
ये बदला उनकी नाफ़रमानियों और हद से बढ़ने का

*तफ़सीर*
     (4) बनी इस्त्राईल की यह अदा भी बहुत बेअदबी की थी कि बड़े दर्जे वाले एक नबी को नाम लेकर पुकारा. या नबी, या रसूलल्लाह या और आदर का शब्द न कहा.
*✍🏽फ़त्हुल अज़ीज़*
     जब नबियों का ख़ाली नाम लेना बेअदबी है तो उनको मामूली आदमी और एलची कहना किस तरह गुस्ताख़ी न होगा. नबियों के ज़िक्र में ज़रा सी भी बेअदबी नाजायज़ है.
     (5) “एक खाने” से एक क़िस्म का खाना मुराद है.
     (6) जब वो इस पर भी न माने तो हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने अल्लाह की बारगाह में दुआ की, हुक्म हुआ “इहबितू” (उतरो).
     (7) मिस्र अरबी में शहर को भी कहते हैं, कोई शहर हो और ख़ास शहर यानी मिस्र मूसा अलैहिस्सलाम का नाम भी है. यहां दोनों में से एक मुराद हो सकता है. कुछ का ख़याल है कि यहां ख़ास शहर मुराद नहीं हो सकता. मगर यह ख़याल सही नही है.
     (8) यानी साग, ककड़ी वग़ैरह, हालांकि इन चीज़ों की तलब गुनाह न थी लेकिन मन्न व सलवा जैसी बेमेहनत की नेअमत छोड़कर उनकी तरफ़ खिंचना तुच्छ विचार है. हमेशा उन लोगों की तबीयत तुच्छ चीज़ों और बातों की तरफ़ खिंची रही और हज़रत हारून और हज़रत मूसा वग़ैरह बुजुर्गी वाले बलन्द हिम्मत नबियों के बाद बनी इस्राईल की बदनसीबी और कमहिम्मती पूरी तरह ज़ाहिर हुई और जालूत के तसल्लुत (अधिपत्य) और बख़्ते नस्सर की घटना के बाद तो वो बहुत ही ज़लील व ख़्वार हो गए. इसका बयान “दुरेबत अलैहिमुज़ ज़िल्लतु” (और उन पर मुकर्रर कर दी गई ख़्वारी और नादारी) (सूरए आले ईमरान, आयत : 112) में है.
     (9) यहूद की ज़िल्लत तो यह कि दुनिया में कहीं नाम को उनकी सल्तनत नहीं और नादारी यह कि माल मौजूद होते हुए भी लालच की वजह से मोहताज ही रहते हैं.
     (10) नबियों और नेक लोगों की बदौलत जो रूत्बे उन्हें हासिल हुए थे उनसे मेहरूम हो गए. इस प्रकोप का कारण सिर्फ़ यही नहीं कि उन्होंने आसमानी ग़िज़ाओं के बदले ज़मीनी पैदावार की इच्छा की या उसी तरह और ख़ताएं हो हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के ज़माने में उनसे हुई, बल्कि नबुव्वत के एहद से दूर होने और लम्बा समय गुज़रने से उनकी क्षमताएं बातिल हुई और निहायत बुरे कर्म और बड़े पाप उनसे हुए. ये उनकी ज़िल्लत और ख़्वारी के कारण बने.
     (11) जैसा कि उन्होने हज़रत ज़करिया और हज़रत यहया को शहीद किया और ये क़त्ल ऐसे नाहक़ थे जिनकी वजह ख़ुद ये क़ातिल भी नहीं बता सकते.
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