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Friday 7 October 2016

_*सजदए सहव*_ #02
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

नमाज़ में अगर्चे 10 वाजिब तर्क हुए हो, सहव के दो ही सज्दे सब के लिये काफी है।

रूकू के बाद सीधा खड़ा होना या दो सजदों के दरमियान एक बार *सुब्हान अल्लाह* कहने की क़िक़दार सीधा बेठना भूल गए तो सज्दए सहव वाजिब है।

क़ुनूत या तकबीरे क़ुनूत भूल गए तो सज्दए सहव वाजिब है।

किराअत वग़ैरा किसी मौक़ा पर सोचने में *3 बार सुब्हान अल्लाह* कहने का वक़्फ़ा गुज़र गया तब सज्दए सहव वाजिब हो गया।

सज्दए सहव के बाद भी अत्तहिय्यात पढ़ना वाजिब है।

इमाम से सहव हुवा और सज्दए सहव किया तो मुक्तदि पर भी सज्दा वाजिब है।

अगर मुक्तदि से ब हालते इक़्तिदा सहव वाके हुवा तो सज्दए सहव वाजिब नहीं।
और नमाज़ लौटने की भी हाजत नहीं।

📮बाक़ी कल की पोस्ट में.. انشاء الله
*✍🏽नमाज़ के अहकाम स.208*
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