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Saturday 29 October 2016

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #62
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*
*_सूरतुल बक़रह, आयत ⑦①_*
कहा वह फ़रमाता है कि वह एक गाय है जिससे ख़िदमत नहीं ली जाती कि ज़मीन जोते और न खेती को पानी दे. बे ऐब है, जिसमें कोई दाग़ नहीं. बोले अब आप ठीक बात लाए (11)
तो उसे ज़िब्ह किया और ज़िब्ह करते मालूम न होते थे (12)

*तफ़सीर*
     (11) यानी अब तसल्ली हुई और पूरी शान और सिफ़त मालूम हुई. फिर उन्होंने गाय की तलाश शुरू की. उस इलाक़े में ऐसी सिर्फ़ एक गाय थी. उसका हाल यह है कि बनी इस्राईल में एक नेक आदमी थे और उनका एक छोटा सा बच्चा था उनके पास सिवाए एक गाय के बच्चे के कुछ न रहा था. उन्हों ने उसकी गर्दन पर मुहर लगाकर अल्लाह के नाम पर छोड़ दिया और अल्लाह की बारगाह में अर्ज़ किया – ऐ रब, मैं इस बछिया को इस बेटे के लिये तेरे पास अमानत रखता हूं. जब मेरा बेटा बड़ा हो, यह उसके काम आए. उनका तो इन्तिक़ाल हो गया. बछिया जंगल में अल्लाह की हिफ़ाज़त में पलती रही. यह लड़का बड़ा हुआ और अल्लाह के फ़ज़्ल से नेक और अल्लाह से डरने वाला, माँ का फ़रमाँबरदार था. एक रोज़ उसकी माँ ने कहा बेटे तेरे बाप ने तेरे लिये जंगल में ख़ुदा के नाम पर एक बछिया छोड़ी है. वह अब जवान हो गई होगी. उसको जंगल से ले आ और अल्लाह से दुआ कर कि वह तुझे अता फ़रमाए. लड़के ने गाय को जंगल में देखा और माँ की बताई हुई निशानियाँ उसमें पाई और उसको अल्लाह की क़सम देकर बुलाया, वह हाज़िर हुई. जवान उसको माँ की ख़िदमत में लाया. माँ ने बाज़ार ले जाकर तीन दीनार में बेचने का हुक्म दिया और यह शर्त की कि सौदा होने पर फिर उसकी इजाज़त हासिल की जाए. उस ज़माने में गाय की क़ीमत उस इलाक़े में तीन दीनार ही थी. जवान जब उस गाय को बाज़ार में लाया तो एक फ़रिश्ता ख़रीदार की सूरत में आया और उसने गाय की क़ीमत छ: दीनार लगा दी, मगर इस शर्त से कि जवान माँ की इजाज़त का पाबन्द न हो. जवान ने ये स्वीकार न किया और माँ से यह तमाम क़िस्सा कहा. उसकी माँ ने छ: दीनार क़ीमत मंजू़र करने की इजाज़त तो दे दी मगर सौदे में फिर दोबारा अपनी मर्ज़ी दरयाफ़्त करने की शर्त रखी. जवान फिर बाज़ार में आया. इस बार फ़रिश्ते ने बारह दीनार क़ीमत लगाई और कहा कि माँ की इजाज़त पर मौक़ूफ़ (आधारित) न रखो. जवान न माना और माँ को सूचना दी. वह समझदार थी, समझ गई कि यह ख़रीदार नहीं कोई फ़रिश्ता है जो आज़मायश के लिये आता है. बेटे से कहा कि अब की बार उस ख़रीदार से यह कहना कि आप हमें इस गाय की फ़रोख़्त करने का हुक्म देते हैं या नहीं. लड़के ने यही कहा. फ़रिश्ते ने जवाब दिया अभी इसको रोके रहो. जब बनी इस्त्राईल ख़रीदने आएं तो इसकी क़ीमत यह मुक़र्रर करना कि इसकी खाल में सोना भर दिया जाए. जवान गाय को घर लाया और जब बनी इस्राईल खोजते खोजते उसके मकान पर पहुंचे तो यही क़ीमत तय की और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की ज़मानत पर वह गाय बनी इस्त्राईल के सुपुर्द की. इस क़िस्से से कई बातें मालूम हुई. (1) जो अपने बाल बच्चों को अल्लाह के सुपुर्द करे, अल्लाह तआला उसकी ऐसी ही ऊमदा पर्वरिश फ़रमाता है. (2) जो अपना माल अल्लाह के भरोसे पर उसकी अमानत में दे, अल्लाह उसमें बरकत देता है. (3) माँ बाप की फ़रमाँबरदारी अल्लाह तआला को पसन्द है. (4) अल्लाह का फ़ैज़ (इनाम) क़ुर्बानी और ख़ैरात करने से हासिल होता है. (5) ख़ुदा की राह में अच्छा माल देना चाहिये. (6) गाय की क़ुरबानी उच्च दर्जा रखती है.
     (12) बनी इस्राईल के लगातार प्रश्नों और अपनी रूस्वाई के डर और गाय की महंगी क़ीमत से यह ज़ाहिर होता था कि वो ज़िब्ह का इरादा नहीं रखतें, मगर जब उनके सवाल मुनासिब जवाबों से ख़त्म कर दिये गए तो उन्हें ज़िब्ह करना ही पड़ा.
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