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Thursday 6 October 2016

_*सजदए सहव*_ #01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

वाजीबाते नमाज़ में से अगर कोई वाजिब भूले से रह जाए या फराइज़ व वाजीबाते नमाज़ में भूले से ताख़ीर हो जाए तो सज्दए सहव वाजिब है।

अगर सज्दए सहव वाजिब होने के बा वुजूद न किया तो नमाज़ लौटाना वाजिब है।

कोई ऐसा वाजिब तर्क हुवा जो वाजीबाते नमाज़ से नहीं बल्कि इसका वुजुब अम्रे खारिज से हो तो सज्दए सहव वाजिब नहीं..
मसलन ख़िलाफे तरतीब क़ुरआन पढ़ना तर्के वाजिब (और गुनाह) है मगर इसका तअल्लुक़ वाजीबाते नमाज़ से नहीं बल्कि वाजीबाते तिलावत से है लिहाज़ा सज्दए सहव नहीं (अलबत्ता इससे तौबा करे)

फ़र्ज़े तर्क होने से नमाज़ जाती रहती है सज्दए सहव से इसकी तलाफि नहीं हो सकती लिहाज़ा दोबारा पढ़िये।

सुन्नते या मुस्तहब्बात मसलन *सना,* *तअव्वुज़,* *तस्मिया,* *आमीन,* *तकबिराने इन्तिक़ालात* और *तस्बिहात* के तर्क से सज्दए सहव वाजिब नहीं होता, नमाज़ हो गई,
मगर दोबारा पढ़ लेना मुस्तहब है भूल कर तर्क किया हो या जानबुझ कर।

बाक़ी अगली पोस्ट में.. انشاء الله
*✍🏽नमाज़ के अहकाम स.207*
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