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Thursday 8 December 2016

*मिलाद शरीफ* #05
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_शरीअत की रौशनी में_*
     आइये आप के सामने एक हदिष पेश करता हु अपने प्यारे आक़ा ﷺ के महेरबान होने की
     चुनान्चे आक़ा ए करीम ﷺ का फरमान मग्फिरत निशान है : जिसने मुज पर 100 मर्तबा दुरुद शरीफ पढ़ा अल्लाह عزوجل उसकी दोनों आँखों के दरमियान लिख देता है की ये निफ़ाक़ और जहन्नम की आग से आज़ाद है और उसे ब-रोज़े कियामत शोहदा के साथ रखूँगा।
*✍🏽मजमुअज़्ज़वायद् 10/253, हदिष 17298*
     अब 100 बार दुरुद शरीफ पढ़ना कौनसी बड़ी बात है ?
     मगर फिर भी जहन्नम से निजात की बशारत दे दी गई अब ये मेहरबानी नहीं तो क्या है ?

     अब और क्या क्या सबुत चाहिये तुम्हे अपने प्यारे नबी ﷺ से मुहब्बत करने के लिये और उनकी विलादत की ख़ुशी मनाने के लिये ?

*_हुज़ूर ने अपनी विलादत खुद मनाई_*
     हज़रत अबू क़तादाرضي الله تعالي عنه से रिवायत है : रसूले करीम ﷺ से पिर का रोज़ा रखने के बारे में सवाल किया गया ओ आपﷺ ने फ़रमाया की,
     इसी दिन मेरी विलादत हुई और इसी दिन मुझ पर क़ुरआन नाज़िल हुआ.
*✍🏽सहीह मुस्लिम, 2/1162, हदिष 819*
*✍🏽नसाई अल-सुनाने कुब्रा, 2/2777, हदिष 146*
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