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Friday 2 December 2016

*सिरते मुस्तफाﷺ*
*_दसवा बाब_* #12
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_वाक़ीअए इफ्क_* #06
     इसके बाद हुज़ूरﷺ ने एक दिन मिम्बर पर खड़े हो कर मुसलमानो से फ़रमाया की उस शख्स की तरफ से मुझे कौन माज़ूर समझेगा, या मेरी मदद करेगा जिसने मेरी बीवी पर बोहतान तराशी करके मेरी दिल आजारी की है, खुदा की क़सम ! में अपनी बीवी को हर तरफ की अच्छी ही जानता हु। और उन लोगो (मुनाफ़िक़ों) ने इस बोहतान में मर्द (सफ्वान बिन मुअत्तल) का ज़िक्र किया है जिस को में बिलकुल अच्छा ही जानता हु।
*✍🏽बुखारी, 2/595*
     हुज़ूरﷺ की बर सरे मिम्बर इस तक़रीर से मालुम हुवा की हुज़ूरﷺ को हज़रते आइशा और हज़रते सफ्वान दोनों की बराअत व तहारत और इफक़त व पाक दामनी का पूरा पूरा इल्म और यक़ीन था और वही नाज़िल होने से पहले ही आपﷺ को यक़ीनी तौर पर मालुम था की मुनाफ़िक़ झुटे और उम्मुल मुअमिनिन पाक दामन है। वरना आप बर सरे मिम्बर क़सम खा कर इन दोनों की अच्छाई का मजमाए आम में हरगिज़ ऐलान न फरमाते।
     पहले ही ऐलाने आम न फरमाने की वजह यही थी की अपनी बीवी की पाक दामनी का अपनी ज़बान से एलान करना हुज़ूरﷺ मुनासिब नही समझते थे, जब हद से ज़्यादा मुनाफ़ीक़ो ने शोरो गोगा शुरू कर दिया तो हुज़ूरﷺ ने मिम्बर पर अपने ख्याल का इज़हार फरमा दिया मगर अब भी ऐलाने आम के लिये आप को वही का इंतज़ार ही रहा।

बाक़ी अगली पोस्ट में.. ان شاء الله
*✍🏽सिरते मुस्तफा, 316*
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