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Wednesday 21 December 2016

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #106
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①④ⓞ_*
बल्कि तुम यूं कहते हो कि इब्राहीम व इस्माईल व इस्हाक़ व यअक़ूब और उनके बेटे यहूदी या नसरानी थे तुम फ़रमाओ क्या तुम्हें इल्म ज़्यादा है या अल्लाह को (16)
और उससे बढ़कर ज़ालिम कौन जिसके पास अल्लाह की तरफ़ की गवाही हो और वह उसे छुपाए(17)
और ख़ुदा तुम्हारे कौतुकों से बेख़बर नहीं.

*तफ़सीर*
     (16) इसका भरपूर जवाब यह है कि अल्लाह ही सबसे ज़्यादा जानता है. तो जब उसने फ़रमाया “मा काना इब्राहीमो यहूदिय्यन व ला नसरानिय्यन” (इब्राहीम न यहूदी थे, न ईसाई) तो तुम्हारा यह कहना झूटा हुआ.
     (17) यह यहूदियों का हाल है जिन्हों ने अल्लाह तआला की गवाहियाँ छुपाईं जो तौरात शरीफ़ में दर्ज थीं कि मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम उसके नबी हैं और उनकी यह तारीफ़ और गुण हैं और हज़रत इब्राहीम मुसलमान हैं और सच्चा दीन इस्लाम है, न यहूदियत न ईसाइयत.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①④①_*
वह एक गिराह  (समूह) है कि गुज़र गया उनके लिये उनकी कमाई और तुम्हारे लिये तुम्हारी कमाई और उनके कामों की तुमसे पूछगछ न होगी.
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