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Monday 5 December 2016

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #93
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①①⑨_*
     बेशक हमने तुम्हें हक़ के साथ भेजा ख़ुशख़बरी देता और डर सुनाता और तुमसे दोज़ख़ वालों का सवाल न होगा

*तफ़सीर*
     कि वो क्यों ईमान न लाए, इसलिये कि आपने अपना तबलीग़ का फ़र्ज़ पूरे तौर पर अदा फ़रमा दिया.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①②ⓞ_*
     और कभी तुमसे यहूदी और नसारा (ईसाई) राज़ी न होंगे जब तक तुम उनके दीन का अनुकरण न करो (19)
तुम फ़रमाओ  अल्लाह ही की हिदायत हिदायत है (20)
और (ऐ सुनने वाले, कोई भी हो) अगर तू उनकी ख्वाहिशों पर चलने वाला हुआ बाद इसके कि तुझे इल्म आचुका तो अल्लाह से तेरा कोई बचाने वाला न होगा और न मददगार (21)

*तफ़सीर*
     (19) और यह असम्भव है, क्योंकि वो झूठे और बातिल है.
     (20) वही अनुकरण के क़ाबिल है और उसके सिवा हर एक राह झूठी और गुमराही वाली.
     (21) यह सम्बोधन उम्मते मुहम्मदिया यानी मुसलमानों के लिये है कि जब तुमने जान लिया कि नबीयों के सरदार सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम तुम्हारे पास सत्य और हिदायत लेकर आए, तो तुम हरग़िज़ काफ़िरों की ख़्वाहिशों की पैरवी न करना. अगर ऐसा किया तो तुम्हें कोई अल्लाह के अज़ाब से बचाने वाला नहीं है.(ख़ाज़िन)
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