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Wednesday 28 December 2016

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #113
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑤ⓞ_*
     और ऐ मेहबूब तुम जहां से आओ अपना मुंह मस्जिदें हराम की तरफ़ करो और ऐ मुसलमानों तुम जहां कहीं हो अपना मुंह उसी की तरफ़ करो कि लोगों को तुमपर कोई हुज्जत (तर्क) न रहे(3)
मगर जो उनमें ना इन्साफ़ी करें (4)
तो उनसे न डरो और मुझसे डरो और यह इसलिये है कि मैं अपनी नेअमत तुमपर पूरी करूं और किसी तरह तुम हिदायत पाओ.
*तफ़सीर*
     (3) और काफ़िर को यह ताना करने का मौक़ा न मिले कि उन्होंने क़ुरैश के विरोध में हज़रत इब्राहीम और इस्माईल अलैहिमस्सलाम का क़िबला भी छोड़ दिया जबकि नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम उनकी औलाद में है और उनकी बड़ाई और बुज़ुर्गी को मानते भी हैं.
     (4) और दुश्मनी के कारण बेजा ऐतिराज़ करें.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑤①_*
     जैसा हमने तुममें भेजा एक रसूल तुम में से (5)
कि तुमपर हमारी आयतें तिलावत करता है (पढ़ता है) और तुम्हें पाक करता (6)
और किताब और पुख़्ता इल्म सिखाता है (7)
और तुम्हें वह तालीम फ़रमाता है जिसकी तुम्हें जानकारी न थी.
*तफ़सीर*
     (5) यानी सैयदे आलम मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम.
     (6) नापाकी, शिर्क और गुनाहों से.
     (7) हिकमत से मुफ़स्सिरीन ने फ़िक़्ह मुराद ली है.
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