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Saturday 17 December 2016

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #102
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①③④_*
यह  (6)
एक उम्मत है कि गुजर चुकी  (7)
उनके लिये जो उन्होंने कमाया और तुम्हारे लिये है जो तुम कमाओ और उनके कामों की तुम से पूछगछ न होगी

*तफ़सीर*
     (6) यानी हज़रत इब्राहीम और यअक़ूब अलैहिस्सलाम और उनकी मुसलमान औलाद.
     (7) ऐ यहूदियों, तुम उनपर लांछन मत लगाओ.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①③⑤_*
और किताबी बोले (8)
यहूदी या नसरानी हो जाओ राह पा जाओगे, तुम फ़रमाओ बल्कि हम तो इब्राहीम का दीन लेते हैं जो हर बातिल  (असत्य) से अलग थे और मुश्रिकों से न थे (9)

*तफ़सीर*
     (8) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि यह आयत यहूदियों के रईसों और नजरान के ईसाइयो के जवाब में उतरी. यहूदियों ने तो मुसलमानों से यह कहा था कि हज़रत मूसा सारे नबियों में सबसे अफ़जल यानी बुज़ुर्गी वाले है. और यहूदी मज़हब सारे मज़हबों से ऊंचा है. इसके साथ उन्होंने हज़रत सैयदे कायनात मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम और इन्जील शरीफ़ और क़ुरआन शरीफ़ के साथ कुफ़्र करके मुसलमानों से कहा था कि यहूदी बन जाओ. इसी तरह ईसाइयों ने भी अपने ही दीन को सच्चा बताकर मुसलमानों से ईसाई होने को कहा था. इस पर यह आयत उतरी.
     (9) इसमें यहूदियों और ईसाइयो वग़ैरह पर एतिराज है कि तुम मुश्रिक हो, इसलिये इब्राहीम की मिल्लत पर होने का दावा जो तुम करते हो वह झूटा है. इसके बाद मुसलमानों को ख़िताब किया जाता है कि वो उन यहूदियों और ईसाइयों से यह कहदें “यूँ कहो कि हम ईमान लाए, अल्लाह पर और उस पर जो हमारी तरफ़ उतरा और जो उतारा गया इब्राहीम व इस्माईल व इस्हाक़ व यअक़ूब और उनकी औलाद पर……………(आयत के अन्त तक).
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