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Saturday 31 December 2016

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #116
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑤⑤_*
     और ज़रूर हम तुम्हें आज़माएंगे कुछ डर और भूख से (4)
और कुछ मालों और जानों और फलों की कमी से(5)
और ख़ुशख़बरी सुना उन सब्र वालों को.
*तफ़सीर*
     (4) आज़मायश से फ़रमाँबरदार और नाफ़रमान के हाल का ज़ाहिर करना मुराद है.
     (5) इमाम शाफ़ई अलैहिर्रहमत ने इस आयत की तफ़सीर में फ़रमाया कि ख़ौफ़ से अल्लाह का डर, भूख से रमज़ान के रोज़े, माल की कमी से ज़कात और सदक़ात देना, जानों की कमी से बीमारियों से मौतें होना, फलों की कमी से औलाद की मौत मुराद है. इसलिये कि औलाद दिल का फल होते हैं. हदीस शरीफ़ में है, सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया जब किसी बन्दे का बच्चा मरता है, अल्लाह तआला फ़रिश्तों से फ़रमाता है तुमने मेरे बन्दे के बच्चे की रूह निकाली. वो अर्ज़ करते हैं, हाँ. फिर फ़रमाता है तुमने उसके दिल का फल ले लिया. अर्ज़ करते हैं, हाँ या रब. फ़रमाता है उसपर मेरे बन्दे ने क्या कहा? अर्ज़ करते हैं उसने तेरी तारीफ़ की और “इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलैहे राजिऊन” (यानी हम अल्लाह की तरफ से है और उसीकी तरफ़ हमें लौटना है) पढ़ा, फ़रमाता है उसके लिये जन्नत में मकान बनाओ और उसका नाम बैतुल हम्द रखो. मुसीबत के पेश आने से पहले ख़बर देने में कई हिकमते हैं, एक तो यह कि इससे आदमी को मुसीबत के वक़्त सब्र आसान हो जाता है, एक यह कि जब काफ़िर देखें कि मुसलमान बला और मुसीबत के वक़्त सब्र, शुक्र और साबित क़दमी के साथ अपने दीन पर कायम रहता है तो उन्हें दीन की ख़ूबी मालूम हो और उसकी तरफ़ दिल खिंचे. एक यह कि आने वाली मुसीबत पेश आने से पहले की सूचना अज्ञात की ख़बर और नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का चमत्कार है. एक हिकमत यह कि मुनाफ़िक़ों के क़दम मुसीबत की ख़बर से उखड़ जाएं और ईमान वाले और मुनाफ़िक़ का फ़र्क़ मालूम हो जाए.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑤⑤_*
     कि जब उनपर कोई मुसीबत पड़े तो कहे हम अल्लाह के माल में है और हमको उसी की तरफ़ फिरना.
*तफ़सीर*
     हदीस शरीफ़ में है कि मुसीबत के वक़्त “इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलैहे राजिऊन” पढ़ना अल्लाह की रहमत लाता है. यह भी हदीस में है कि मूमिन की तकलीफ़ को अल्लाह गुनाह मिटाने का ज़रिया बना देता है.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①⑤⑦_*
ये लोग हैं जिनपर उनके रब की दुरूदें हैं और रहमत, और यही लोग राह पर हैं.
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