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Wednesday 21 December 2016

*​​फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा​​​​​* #10
*_आइशा सिद्दीक़ा की इल्मी शानो शौकत_* #01
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सहाबा की मर्कज़ी दर्सगाह बारगाहे आइशा_*
     हज़रते अबू मूसा असअरीرضي الله تعالي عنه फरमाते है : हम असहाबे रसूल को किसी बात में इश्काल होता तो हम आइशा सिद्दीक़ाرضي الله تعالي عنها की बारगाह में सुवाल करते तो आप के पास से ही उस बात का इल्म पाते।
*✍🏽तिर्मिज़ी, 873, हदीस : 3882*

     मुफ़्ती अहमद यार खान अलैरहमा बयान करदा रिवायत के तहत फरमाते है : असहाबे रसूलुल्लाह को किसी मसअले में कोई इश्काल होता और वो मुश्किल कहि हल न होती तो हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها के पास हाज़िर होते, इन के पास या तो उस के मुतअल्लिक़ हदीस मिल जाती या किसी हदीस से उस मसअले का इस्तिम्बात मिल जाता। अज़ आदम ता ई दम (हज़रते आदम से ले कर आज तक) कोई बीबी ऐसी अलीमा फ़क़ीहा पैदा न हुई जेसी जनाबे हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها हुई।
     आपرضي الله تعالي عنها उलूमे क़ुरआनीया, उलूमे हदीस की जामेअ, बड़ी मुहद्दिसा, बड़ी फ़क़ीहा थी। सिर्फ एक मिसाल पेश करता हु : किसी ने अर्ज़ किया ऐ उम्मुल मुअमिनिन  ! क़ुरआन से मालुम होता है की हज व उम्रह में सफा व मरवा की सअय वाजिब नही, सिर्फ जाइज़ है क्यू की अल्लाह ने फ़रमाया : *इस पर गुनाह नही की इन दोनों के फेरे करे*, आपرضي الله تعالي عنها ने जवाब दिया : अगर ये सअय वाजिब न होती तो यु इरशाद होता *की इन के सअय न करने में कोई गुनाह नही*
     इस एक जवाब से उसूले फिक़्ह का कितना दकीक़ मसअला  हल फरमा दिया की वाजिब की पहचान ये है की इस के करने में सवाब, न करने में गुनाह, जाइज़ की पहचान ये है की उस के न करने में गुनाह न हो। यहाँ आयत में पहली बात फ़रमाई गई है।
*✍🏽मीरआतुल मनाजिह, 1/505*
*✍🏽फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा, 28*
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