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Thursday 15 December 2016

*​​फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा​​​​​* #09
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_आइशा का नेकी की दावत का ज़ज्बा_*
     हज़रते बनानाرضي الله تعالي عنها फरमाती है की वो उम्मुल मुअमिनिन हज़रते आइशाرضي الله تعالي عنها के पास थी की आप की खिदमत में एक बच्ची लाइ गई जिस के पैर में झाझन (गुंगरू) थे जो आवाज़ कर रहे थे आप बोली की इसे मेरे पास हरगिज़ न लाओ मगर इस सूरत में की इस के झाझन तोड़ दिये जाए, मेने रसूलुल्लाहﷺ को फरमाते सुना की उस घर में फ़रिश्ते नहीं आते जिस में झाझन हो।
*✍🏽सुनन इब्ने दाऊद, 226*

     देखा आप ने ! औरतो को ज़ेवरात की आवाज़े छुपाने का भी हुक्म है, इन्हें घर में चलने फिरने में भी इस क़दर ज़ोर से पाउ रखना की ज़ेवर की झंकार की आवाज़ गैर महरमो तक पहुचे मना है,
     अल्लाह फ़रमाता है :
*और ज़मीन पर पाउ ज़ोर से न रखे की जाना जाए उन का छुपा हुवा सिंगार।*
पारह, 18, सुरतुन्नूर, 31
     जनाब मुफ़्ती नईमुद्दीन मुरादाबादी अलैरहमा इस आयत की तफ़सीर में फरमाते है : यानी औरत घर के अंदर चलने फिरने में भी पाउ इस क़दर आहिस्ता रखे की इन के ज़ेवर की झंकार न सुनी जाए।
     मज़ीद फरमाते है : इस लिये चाहिए की औरते बाजेदार झांझन न पहने हदीस में है की अल्लाह उस क़ौम की दुआ नही क़बूल फ़रमाता जिन की औरते झांझन पहनती हो। इस से समझना चाहिए की जब ज़ेवर की आवाज़ अदमे कबूले दुआ की सबब है तो ख़ास औरत की आवाज़ और इस की बे पर्दगी केसी मुजिबे गजबे इलाही होगी, पर्दे की तरफ से बे परवाई तबाही का सबब है।
*✍🏽तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान, 18, सुरतुन्नूर, 31*
   
     मेरे आक़ा आला हज़रत अलैरहमा इरशाद फरमाते है : बजने वाला ज़ेवर औरत के लिये इस हालत में जाइज़ है की ना महरमो मसलन खाला, मामू, चचा, फूफी के बेटो, जेठ, देवर, बहनोई के सामने न आती हो न के ज़ेवर की झंकार न महरम तक पहुचे।
*✍🏽फतावा रज़विय्या, 22/128*
*✍🏽फैज़ाने आइशा सिद्दीक़ा, 24*
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