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Saturday 3 December 2016

*तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान* #92
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①①⑦_*
     नया पैदा करने वाला आसमानों और ज़मीन का (11)
और जब किसी बात का हुक्म फ़रमाए तो उससे यही फ़रमाता है कि हो जा और वह फ़ौरन हो जाती है (12)

*तफ़सीर*
     (11) जिसने बग़ैर किसी पिछली मिसाल के चीज़ों को शून्य से अस्तित्व प्रदान किया.
     (12) यानी कायनात या सृष्टि उसके इरादा फ़रमाते ही अस्तित्व में आ जाती है.

*_सूरतुल बक़रह, आयत ①①⑧_*
     और जाहिल  बोले (13)
अल्लाह हम से क्यों नहीं कलाम करता (14)
या हमें कोई निशानी मिले (15)
उनसे अगलों ने भी एेसी ही कही उनकी सी बात. उनके दिल एक से है (16)
बेशक हमने निशानियाँ खोल दीं यक़ीन वालों के लिये (17)

*तफ़सीर*
     (13) यानी एहले किताब या मूर्तिपूजक मुश्रिकीन.
     (14) यानी वास्ते या माध्यम के बिना ख़ुद क्यों नही फ़रमाता जैसा कि फ़रिश्तों और नबियों से कलाम फ़रमाता है. यह उनके घमण्ड की सर्वोच्च सीमा और भारी सरकशी थी, उन्होंने अपने आप को फ़रिश्तों और नबियों के बराबर समझा. राफ़ेअ बिन ख़ुजैमा ने हुज़ूरे अक़दस सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से कहा, अगर आप अल्लाह के रसूल हैं तो अल्लाह से फ़रमाइये वह हमसे कलाम करे, हम ख़ुद सुनें, इस पर यह आयत उतरी.
     (15) यह उन आयतों का दुश्मनी से इन्कार है जो अल्लाह तआला ने अता फ़रमाई.
     (16) नासमझी, नाबीनाई, कुफ़्र और दुश्मनी में. इसमें नबीये करीब सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को तसल्ली दी गई है कि आप उनकी सरकशी और ज़िद और इन्कार से दुखी न हों. पिछले काफ़िर भी नबियों के साथ ऐसा ही करते थे.
     (17) यानी क़ुरआनी आयतें और खुले चमत्कार इन्साफ़ वाले को सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के नबी होने का यक़ीन दिलाने के लिये काफ़ी हैं, मगर जो यक़ीन करने का इच्छुक न हो वह दलीलों या प्रमाणों से फ़ायदा नहीं उठा सकता.
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