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Friday 17 June 2016

तफ़सीरे अशरफी


हिस्सा~13
*​​सूरए बक़रह, पारह-01​*​

*ﺑِﺴْـــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*
*​आयत ⑨ _तर्जुमह*
धोका देना चाहते है अल्लाह को और मुसलमानो को। और नही धोका देते, मगर अपने आपको, और महसूस नही करते।

*तफ़सीर*
वो तो बीएस धोका देना चाहते है अल्लाह को और समजते है के अगर हमने रसूले पाक को धोका दे दिया, तो बस अल्लाह को धोका दिया, और मुसलमानो को सिद्दिके अकबर, फारूके आज़म व दीगर सहाबा को, और वाकेआ ये है के वो नही धोका देते मगर अपने आपको अपने फरेब में खुद भी फसे। और अव्वल दर्जे के बेवकूफ है के वो इसको महसूस ही नहीं करते के अल्लाह आलीमुल ग़ैब वशशहादह है। उससे उनकी दिली बाते कैसे छुप सकती है ? अपने पैगम्बर को उनसे उनके दिलोके ख़याल से आगाह कर रख्खा है। तो उन्हें भी क्या धोका हो सकता है ? मुसलमानो को उनके रसूल ने उनका सारा हाल बता दिया है। तो जब वो कुछ छुपा-ढका रखते नही, तो धोका किसको देंगे ?
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