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Tuesday 7 June 2016

तफ़सीरे अशरफी



हिस्सा~06

*सूरतुल फातेहा, पारह-1*
*आयत ⑤ _तर्जुमह*_
चला हमको रास्ता सीधा
_*तफ़सीर*_
या अल्लाह ! हमारा चलना क्या और हम चल ही क्या सकते है ? बीएस अपने करमसे चला हमको उस रास्ते पर, जो तुझ तक पहोचा है, मौजूद भी है, बिलकुल सीधा भी है।

*आयत ⑥ _तर्जुमह*_
रास्ता उनका के इनआम फ़रमाया तूने जिन पर
_*तफ़सीर*_
वो रास्ता उनका रस्ता है, जो आज नया नहीं है। उस पर चलनेवाले चला किये। और ऐसा सीधा है के वो तुझ तक पहोंचे और ऐसा पहोंचे के इनआम फ़रमाया तूने जिन के खुदा रसीदह होने पर। और तेरे इनआम फरमाने ही से जाना के वो रास्ता अच्छा है। वो तेरे अम्बिया व सिद्दीक़ीन व शोहदा व स्वालेहिन का रास्ता है।

*आयत ⑦ _तर्जुमह*_
न उनका के गज़ब फ़रमाया गया जिन पर और न गुमराहोका।
_*तफ़सीर*_
न उन यहूदियो और न यहूदी प्रकृतिवालो का रास्ता के क़त्ले नाहक, तौहीन अम्बिया और ज़ुल्मकी वजहसे गज़ब फ़रमाया गया जिन पर। और न ईसाइयो और न इसाइय्यत नवाज़ (इसाइयोको खुश करने वाले), अल्लाह को छोड़ देने वाले गुमराहोका। और तेरे गज़ब फरमाने और गुमराह करार देने से ही हमने जाना के ये रास्ता बुरा है।

*अय अल्लाह इस दुआ को क़ुबूल फरमा*
आमीन
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