Pages

Wednesday 8 June 2016

सिरते मुस्तफा ​ﷺ


*​जंगे उहुद*​

_जंग की इब्तिदा_
हिस्सा~01

सबसे पहले कुफ्फार कुरैश की औरते दफ बजा कर ऐसे अशआर गाती हुई आगे बढ़ी जिन में जंग बद्र के मक़्तूलिन का मातम और इन्तिक़ामे खून का जोश भरा हुवा था। लश्करे कुफ्फार के सिपाह सालार अबू सुफ़यान की बीबी "हिन्द" आगे आगे और कुफ्फार कुरैश के मुअज़्ज़ज़् घरानो की 14 औरते उसके साथ साथ थी और ये सब आवाज़ मिला कर ये अशआर गया रही थी की...

हम आसमान के तारो की बेटिया है हम कालीनों पर चलने वालिया है..
अगर तुम बढ़ कर लड़ोगे तो हम तुम से गले मिलेंगे और पीछे क़दम हटाया तो हम तुम से अलग हो जाएंगे....

मुशरिकीन की सफों में से सबसे पहले जो शख्स जंग के लिये निकला वो अबू आमिर औसी था। जिसकी इबादत और पारसाई की बिना पर मदीना वाले उसको राहिब कहा करते थे मगर हुज़ूर ﷺ ने उसका नाम "फ़ासिक़" रखा था।
जमानए जाहिलिय्यत में ये शख्स अपने क़बीले ओस का सरदार था और मदीने का मक़बूले आम आदमी था। मगर जब रसूले अकरम मदीने में तशरीफ़ लाए तो ये शख्स जज़्बए हसद में जल कर खुदा के महबूब की मुखालफत करने लगा और मदीने से निकल कर मक्का चला गया और कुफ्फार कुरैश को आप से जंग करने पर आमादा किया। इसको बड़ा भरोसा था की मेरी क़ौम जब मुझे देखेगी तो रसूलल्लाह का साथ छोड़ देगी।

चुनान्चे उसने मैदान में निकल कर पुकारा की ऐ अन्सार ! क्या तुम लोग मुझे पहचानते हो ? में अबू आमिर राहिब हु।

*सिरते मुस्तफा 258*
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰
📮Posted by:-
*DEEN-E-NABI ﷺ*
💻JOIN WHATSAPP
📲+91 9723 654 786
📧facebook.com/deenenabi
📧Deen-e-nabi.blogspot.in

No comments:

Post a Comment