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Tuesday 21 June 2016

बुग्ज़ व किना

*जन्नती आदमी*
*ﺑِﺴْـــــــﻢِﷲِﺍﻟﺮَّﺣْﻤَﻦِﺍلرَّﺣِﻴﻢ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

हज़रते अनस رضي الله تعالي عنه फरमाते है कि हम हुज़ूर ﷺ की बारगाह में हाज़िर थे कि आप ने फ़रमाया अभी तुम्हारे पास इस रस्ते से एक *जन्नती आदमी* आएगा। उसी वक़्त एक अन्सारी साहिब वहा आए जिन की दाढ़ी वुज़ू के पानी से तर थी, उन्हों ने बाए हाथ में अपनी जुतिया उठा रखी थी। मुसलसल 3 दिन ऐसा ही हुवा।
हज़रते अब्दुल्लाह बिन अम्र رضي الله تعالي عنه फरमाते है कि में उस अन्सारी के पास पहुचा और पूछा : क्या आप मेरी मेहमान नवाज़ी कर सकते है ? उन्हों ने हामी भरी और मुझे अपने साथ ले गए।
में 3 राते उनके पास रहा, इस दौरान में ने उन्हें रात को क़याम करते यानी नवाफ़िल अदा करते हुए नही देखा, हा ! ये ज़रूर देखा कि जब वो बिस्तर पर करवटे बदलते तो ज़िकरुल्लाह करते यहाँ तक की नमाज़े फ़ज्र का वक़्त हो जाता और वो अच्छी बात करते या खामोश रहते।
जब 3 राते इसी तरह गुज़र गई तो मेने उनके अमल को कम जाना चुनान्चे में ने उनसे कहा कि में ने सरकार को ये फरमाते हुए सुना : अभी तुम्हारे पास एक जन्नती आदमी आएगा फिर तीनो बार आप ही आए तो में ने सोचा कि आप के पास रह कर आप का अमल देखु, लेकिन मुझे तो आप का कोई ज़्यादा अमल दिखाई नहीं दिया।
जब में वापस होने लगा तो उन्हों ने मुझे बुलाया और कहा :मेरा अमल तो वही है जो आप देख चुके है लेकिन में औने दिल में किसी मुसलमान के लिये *किना* नही रखता और न ही मुसलमान को मिलने वाली नेमते इलाही पर *हसद* करता हु।
हज़रते अब्दुल्लाह رضي الله تعالي عنه ने फ़रमाया एहि वो वस्फ है जिस ने आप को इस मक़ाम पर पंहुचा दिया।
*शोएबुल ईमान 5/264*
*बुग्ज़ व किना 35*
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