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Saturday 4 June 2016

नमाज़ के अहकाम

सज्दए तिलावत के मदनी फूल
हिस्सा~01

आयते सज्दा पढ़ने या सुनने से सज्दा वाजिब हो जाता है। लड़ने में ये शर्त है कि इतनी आवाज़ में हो कि अगर कोई उज़्र न हो तो खुद सुन सके, सुनने वाले के लिये ये ज़रूरी नही कि बिल क़स्द सुनी हो बिला क़स्द सुनने से भी सज्दा वाजिब हो जाता है।

किसी भी ज़बान में आयत का तर्जमा पड़ने और सुनने वाले पर सज्दा वाजिब हो गया, सुनने वाले ने ये समझा हो या न समझा हो कि आयते सज्दा का तर्जमा है। अलबत्ता ये ज़रूरी है कि उसे न मालुम हो तो बता दिया गया हो की ये आयते सज्दा का तर्जमा था और आयत पढ़ी गई हो तो इसकी ज़रूरत नहीं की सुनने वाले को आयते सज्दा होना बताया गया हो।
आलमगिरी 1/133

बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह

नमाज़ के अहकाम स.212

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