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Tuesday 28 June 2016

सिरते मुस्तफा ﷺ


*जंगे उहूद*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_लंगड़ाते हुए बहिश्त में_*
हिस्सा~02
हज़रते अबू तल्हा رضي الله تعالي عنه का बयान है की हज़रते अम्र बिन जमुह رضي الله تعالي عنه को देखा की वो जंग में ये कहते हुए चल रहे थे की "खुदा की क़सम! में जन्नत का मुश्ताक़ हु"। उनके साथ साथ उनको सहारा देते हुए उनका लड़का भी इन्तिहाई शुजाअत के साथ लड़ रहा था यहाँ तक कि ये दोनों शहादत से सरफ़राज़ हो कर बागे बहिश्त में पहुच गए।
लड़ाई खत्म हो जाने के बाद इनकी बीवी हिन्द मेंदाने जंग में पहुची और उस ने एक ऊंट पर इन की और अपने भाई और अपने बेटे की लाश को लड़ कर दफन के लिये मदीना लाना चाहा तो हज़ारो कोशिशो के बा वुजूद किसी तरह भी ऊंट एक क़दम भी मदीने की तरफ नही चला।
हिन्द ने जब हुज़ूर ﷺ से ये माजरा अर्ज़ किया तो आप ने फ़रमाया कि ये बता क्या अम्र बिन जमुह ने घर से निकलते वक़्त कुछ् कहा था ? हिन्द ने कहा की जी हा ! वो ये दुआ कर के घर से निकले थे की या अल्लाह ! मुझ को मैदाने जंग से अहलो इयाल में आना नसीब मत कर।
आप ने फ़रमाया कि यही वजह है कि ऊंट मदीने की तरफ नहीं चल रहा है।
*✍🏽सिरते मुस्तफा 270*
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