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Wednesday 29 June 2016

तफ़सीरे अशरफी


हिस्सा-25
*सूरए बक़रह_पारह-01*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*आयत ②④_तर्जुमह*
पस अगर तुम न कर सके, और हरगिज़ न कर सकोगे, तो डरो उस आग से, वो जिसका ईंधन इन्शान और संगीन मुर्तिया है, तैयार कर रख्खी है काफिरो के लिये।

*तफ़सीर*
याद रखो के (अगर तुम न कर सके) और ये भी याद रखो, हम साफ़ बताए देते है के क़यामत तक तुम (हरगिज़ न कर सकोगे), तो तुम खुद ही अपनी हड्डियों, बोटियों पर रहम खाओ और डरो जहन्नम की आग से जो भड़क रही है, वो जहन्नम जिसको जलाने ने लिये (ईंधन) तुम (इंसान) हो और तुम्हारी (संगीन मुर्तिया है) जिनको पूजने के लिये तुमने तराश लिया है।
उस जहन्नम की आगको ये न समझ ना के आइन्दा पैदा की जाएगी। बल्कि वो तो पहले ही से (तैयार कर रखी है) तुम सब (काफिरो के लिये)। उसमे कोई बदनसीब मुसलमान अगर किसी बदअमली से गया, तो बिल आखिर निकाल लिया जाएगा और काफिरो का तो वो घर ही है।
वो उसमे हमेशा रहेंगे।
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