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Monday 27 June 2016

सिरते मुस्तफा ﷺ


*जंगे उहूद*
*بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

*_लंगड़ाते हुए बहिश्त में_*
हज़रते अम्र बिन जमुह अन्सारी رضي الله تعالي عنه लंगड़े थे, ये घर से निकलते वक़्त ये दुआ मांग कर चले थे की या अल्लाह ! मुझ को मैदाने जंग से अहलो इयाल में आना नसीब मत कर, इन के चार फरजंद भी जिहाद में मसरूफ़ थे। लोगो ने इन कक लंगड़ा होने की बिना पर जंग करने से रोक दिया तो ये हुज़ूर की बारगाह में गिड़गिड़ा कर अर्ज़ करने लगे की या रसूलल्लाह ﷺ ! मुझ को जंग में लड़ने की इजाज़त अता फरमाइये, मेरी तमन्ना है कि में भी लंगड़ाता हुवा बागे बिहिश्त में चला जाऊ।
उनकी बे क़रारी और गीर्य व ज़ारी से हुज़ूर ﷺ का कल्बे मुबारक मुतास्सिर हो गया और आप ने उनको जंग की इजाज़त दे दी। ये ख़ुशी से उछल पड़े और अपने एक फरजंद को साथ ले कर काफिरो के हुजूम में घुस गए।

बाक़ी कल की पोस्ट में..इन्शा अल्लाह
*सिरते मुस्तफा 270*
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