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Wednesday 10 August 2016

फुतूह अल ग़ैब

*ज़ातकी नफी मुखालिफते नफ्स:*
(हिस्सा 9)

 *بِسْــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*الصــلوة والسلام‎ عليك‎ ‎يارسول‎ الله ﷺ*

      यही वो अमर(फरमान) है जिससे शरीयतने न तो मना किया है न उसे करने का हुकम दिया है। यही अमर(काम) उस मुबाह (हलाल, दुरुस्त,पाक) में भी है जिसकी न सख्त मुमानेअत (मना करना) है, न वो वाजिब है। बल्के महमिलात (बेकार) में से है। इसमे बंदे को इख्तियार दिया गया है। इस तरह उसे मुबाह केहते हैं। लेकिन इसमें कोइ सखश तरमीम (इस्लाह, दुरुस्त) व-तन्सीख(मन्सूख करना) का इख्तियार नहीं रखता।
      जब आदमी के सब काम अल्लाहकी तरफ से होंगे। जिस कामका हुकम शरआमें है वो इसके मुताबिक और जिसका हुकम शरियतमें नहीं वो बातिनी अमर से अंजाम देगा,वो आदमी एहले हकीकत में से हो जाएगा और जिस काम में अमर बातिन नहीं वो खालिस फेअले इलाहीए तकदीर महेज़ और हालत तसलीम है।
      अगर बन्दा “हक्कुल हक” की मंजिलमें है जो मिट जाने और फना हो जाने की हालतमें है, तो वो अब्दाल है। अब्दालोंके दिल खुदा तआला के लिये  शिकसता हो चुके हैं। यही लोग मोहिद( खुदा को एक जाननेवाले) हैं। आरिफ (वली, खुदा सनास) हैं, इल्मो अमल के मालिक हैं, उमरा (दोलतमंद) के सरखील (सरदार) हैं।
बाक़ी कल की पोस्ट में... इंसा अल्लाह

*✍🏽फुतूहल ग़ैब*  पेज 25,26
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खादिमे दिने नबी ﷺ
 *फ़ैयाज़ सैय्यिद*
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