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Friday 19 August 2016

क़ब्र में आनेवाला दोस्त

*एकदिन मरना है आखिर मौत है*
*بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ*
*اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ*

     दिन और रात गोया दो सवारिया है जिन पर हम बारी बारी सुवार होते है, ये सवारिया मुसलसल अपना सफर जारी रखे हुए है और हमे मौत की मन्ज़िल पर पहोचा कर ही दम लेंगी,
     क्या आप ने गौर किया के हम दिन के गुज़रने और रात के कटने पर बहुत खुश होते है हालांके हमारी ज़िन्दगी का एक दिन या एक रात कम हो जाती है और हम मौत के मजीद क़रीब हो जाते है, हमारी हेसिय्यत तो उस बल्ब की तरह है की सारी चकाचौंद और तुवानाइ प्लास्टिक के एक बटन में छुपी होती है, उस बटन पर पड़ने वाला ऊँगली का हल्का सा दबाव उसकी रोशनियां गुल कर देता है।
    इसी तरह मौत का वक़्त आने पर हमारा चाको चौबन्द जिस्म इतना बेबस हो जाता है के हम अपनी मर्ज़ी से हाथ भी नही हिला सकते, अगर्चे ये तै हे के एक दिन हमे भी मरना है मगर हम नही जानते के मौत में कितना वक़्त बाकी है ? क्या मालुम के आज का दिन हमारी ज़िन्दगी का आखरी दिन या आने वाली रात हमारी आखरी रात हो ! बल्कि हमारे पास तो इसकी भी ज़मानत नही के एक के बाद दूसरा सास ले सकेंगे या नही ? क्यू की सास फेफड़ो में जाते और बहार निकलते वक़्त इंसान के इख्तियार में नही होता और न ही इस पर ऐतिबार किया जा सकता है, और हो सकता है के जो सास हम ले रहे है वो आखरी हो !
     आए दिन ये खबरे हमे सुनने को मिलती है के फुला इस्लामी भाई अच्छे खासे थे ब ज़ाहिर उन्हें कोई मरज़ भी न था, लेकिन अचानक हार्टफेल हो जाने की वजह से चन्द मिनट के अंदर उनका इंतिक़ाल हो गया,
     यु ही किसी भी लम्हे हमे इस दुन्या से रुखसत होना पड़ सकता है क्यू के जो रात क़ब्र में गुजरनी है वो बाहर नही गुज़र सकती।

*_मौत को याद करने का फायदा_*
     हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया : जिसे मौत की याद ख़ौफ़ज़दा करती है क़ब्र उस के लिये जन्नत का बाग़ बन जाएगी।
*✍🏽क़ब्र में आनेवाला दोस्त, 26*
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