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Saturday 20 August 2016

तर्जमए कन्ज़ुल ईमान व तफ़सीरे खज़ाइनुल इरफ़ान

#12

*_सूरतुल बक़रह, आयत ③/2_*
और नमाज़ क़ायम रखें

*तर्जुमह*
     नमाज़ के क़ायम रखने से ये मुराद है कि इसपर सदा अमल करते हैं और ठीक वक्तों पर पूरी पाबन्दी के साथ सभी अरकान के साथ नमाज़ की अदायगी करते हैं और फ़र्ज़, सुन्नत और मुस्तहब अरकान की हिफ़ाज़त करते है, किसी में कोई रूकावट नहीं आने देते,
     जो बातें नमाज़ को ख़राब करती हैं उन का पूरा पूरा ध्यान रखते हैं और जैसी नमाज़ पढ़ने का हुक्म हुआ है वैसी नमाज़ अदा करते हैं.
     नमाज़ के हुक़ूक़ : नमाज़ के हुक़ूक़ दो तरह के हैं एक ज़ाहिरी, ये वो हैं जो अभी अभी उपर बताए गए. दूसरे बातिनी, यानी आंतरिक, पूरी यकसूई या एकाग्रता, दिल को हर तरफ़ से फेरकर सिर्फ अपने पैदा करने वाले की तरफ़ लगा देना और दिल की गहराईयों से अपने रब की तारीफ़ और उससे दुआ करना.
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